खेल पर्यावरण और समाज Study Material कक्षा – 12 स्वास्थ्य एवं शारीरिक शिक्षा | Class – 12 Health & Physical Education
वातावरण या पर्यावरण का अर्थ (Meaning of Environment)
जो हमें चारों ओर से घेर लेती है, वह वातावरण कहलाती है। वातावरण उन तत्वों से बना है जो हमारे जीवन या क्रिया को किसी न किसी रूप में प्रभावित करती हैं। परिणाम स्वरूप यह उस शक्ति, व दशा से संबंधित है, जो बाहर से व्यक्ति को प्रभावित करती है।
डगलस (Douglas) और हॉलैण्ड (Holland) के अनुसार – वातावरण शब्द कुल मिलाकर, उन सभी बाहरी शक्तियों, प्रभावों तथा दशाओं का उल्लेख करता है जो जीवन, प्रकृति, व्यवहार और वृद्धि, विकास और जीवित जीवों की परिपक्वता को प्रभावित करता है।
पर्यावरण मनुष्य के चारों ओर के उन सभी सामाजिक, आर्थिक, भौतिक व रासायनिक तत्वों का मेल है, जिनसे यह प्रभावित होता है और जिन्हें वह प्रभावित करता है। पर्यावरण उन सभी दशाओं का योग है, जो किसी स्थान पर व किसी समय में मानव को घेरे हुए हैं।
वातावरण या पर्यावरण (Environement)
1) भौतिक वातावरण – भौतिक वातावरण के अंतर्गत प्राकृतिक वातावरण और कृत्रिम वातावरण आते हैं। सूर्य, जलवायु, मौसम समुद्र तल से ऊँचाई व दूरी, वनस्पति नदियाँ, पर्वत, मरुस्थल आदि प्राकृतिक वातावरण (भौगोलिक वातावरण) के अंतर्गत आते हैं।
आर्थिक वस्तुएँ, घर सड़कें, वन, घरेलू पशु, मशीनें, सुविधाएँ आदि आर्थिक वातावरण अर्थात कृत्रिम वातावरण के अंतर्गत आती हैं।
2) सामाजिक वातावरण – सांस्कृतिक वातावरण और पारम्परिक वातावरण सामाजिक वातावरण के अंतर्गत आते हैं। कला, साहित्य, धर्म, संगीत, दर्शनशास्त्र आदि सांस्कृतिक वातावरण का अंग हैं। अभिवृत्तियाँ, विश्वास मान्यताएँ आदि पारम्परिक वातावरण के अंतर्गत आते हैं।
समाज का अर्थ (Meaning of Society)
सोसाइटी (Society) शब्द की व्युत्पत्ति लेटिन भाषा के शब्द ‘सोसिएस’ (Socious) शब्द से हुई है जिसका अर्थ – सभा अथवा सहचारिता है। व्यक्तियों का एक विशाल समूह जो एक-दूसरे के सहचारी होते हैं, अर्थात धार्मिक, परोपकारी, सांस्कृतिक, वैज्ञानिक, राजनैतिक, देशभक्तिपूर्ण अथवा किसी अन्य उद्देश्य से जुड़े हुए व्यक्तियों का संगठित समूह समाज कहलाता है।
ए.डब्ल्यू.ग्रीन (A.W. Green) के अनुसार – यह सबसे विशाल समूह है जिसमें व्यक्तियों के संबंध आपस में होते हैं।
मैकाइवर (Maclver) के अनुसार – समाज संबंधों का एक जाल है, जो सदैव बदलता रहता है।
लिंटन (Linton) के अनुसार – साथ रहने वाले तथा कार्य करने वाले लोगों का कोई भी समूह जो संगठित रहने की इच्छा रखते हों तथा जो सुपरिभाषित इकाइयों के साथ स्वयं को एक सामाजिक इकाई मानते हों।
परिणाम स्वरूप समुदाय, राष्ट्र अथवा विशाल समूह जिसके रीति-रिवाज तथा क्रियाकलाप एवं हित या रुचियाँ सामूहिक हों वह सब मिलकर समाज का निर्माण करते हैं।
खेल वातावरण का अर्थ एवं आवश्यकता (Meaning and Need of Sports Environment)
खेल वातावरण वे दशाएँ व परिस्थितियाँ होती हैं, जिनमें खिलाड़ी खेल गतिविधियों या क्रियाओं में भाग लेता है या लिप्त रहता है। वातावरण के बदलावों के आधार पर उचित खेल गतिविधियों या क्रियाओं का चयन करना पड़ता है। परिणाम स्वरूप सभी कारक (Factors) व दशाएँ (Conditions) जो खेलों को उन्नत व प्रोत्साहित करती हैं, खेल वातावरण (Sports Environment) बनाती हैं। खेल के लिए दो प्रकार के वातावरण आवश्यक हैं – भौतिक वातावरण और सामाजिक वातावरण।
(क) भौतिक वातावरण – खेलों के भौतिक वातावरण में प्राकृतिक वातावरण तथा कृत्रिम या मानव निर्मित वातावरण आते हैं। खेल मैदान (Sports Grounds), कोर्ट्स (Courts), जिम्नाजियम्स, जलवायु, मौसम, समुद्र तल से ऊँचाई (Altitude), पर्वतों, स्टेडियम, स्पोर्ट्स कॉम्पलेक्स, इंडोर हॉल्स (Indoor halls), तरणतालों (Swimming pools), परिणाम स्वरूप खेल के लिए खेल उपकरण व उस क्षेत्र के चारों ओर से घिरे हुए क्षेत्र आदि का मौजूद होना व अनुकूल होना आवश्यक है। उदाहरण के लिए जैसे – सर्फिंग (Surfing) समुद्र पर निर्भर करती है। स्किंग (Skiing) बर्फ पर निर्भर करती है। उसी प्रकार हर खेल के लिए विशेष उपकरण और स्थान आवश्यक होते हैं।
ख) सामाजिक वातावरण (Social Environment) – व्यक्ति उस क्षेत्र के पारंपरिक व सांस्कृतिक वातावरणों द्वारा स्थापित निर्देशों का पालन करता है जिसमें वह रहता है। स्थानीय रीति-रिवाजों, समारोहों व वर्जित या निषेध कार्यों सहित, स्थानीय संस्कृतियों के महत्वपूर्ण अंश निश्चित क्षेत्रों को नियंत्रित करते हैं। यह निषेध या वर्जन (Taboos) यह निर्धारित करते हैं कि व्यक्ति को क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए। परिणाम स्वरूप यह स्पष्ट है कि खेलों में भाग लेने का चुनाव संस्कृति व परंपरा के द्वारा भी प्रभावित होता है। धर्म भी खेल गतिविधियों को वरीयता (Preference) देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
खेल के सकारात्मक व नकारात्मक गतिविधि के लिए प्रशिक्षकों, खेल अधिकारियों, दर्शकों, विश्वासों व व्यवहार भी महत्वपूर्ण कारण हैं। यदि खेल अधिकारियों व प्रशिक्षकों का व्यवहार नैतिक व आचारिक नहीं होगा तो खेल के लिए प्रोत्साहन व उन्नति संभव नहीं है।
खेल वातावरण की आवश्यकता (Need of Sports Environment)
खेलों की उन्नति व प्रोत्साहन के लिए हमेशा उचित खेल वातावरण की आवश्यकता होती है। जिस प्रकार पौधे की वृद्धि व विकास के लिए उचित वातावरण महत्वपूर्ण होता है। उसी प्रकार यदि खिलाड़ी को उचित खेल वातावरण नहीं मिलेगा तो वह खेल-कूद में फल फूल नहीं सकता यानी उसका विकास नहीं हो सकता है। अनेक कारण हैं जिस वजह से उचित खेल वातावरण का होना आवश्यक होता है, जैसे –
क) खेलों के स्तर को बढ़ाने के लिए (For Raising the Standard of Sports) – विश्व का प्रत्येक देश खेलों के क्षेत्र में उच्च कोटि के स्थान पर पहुँचना चाहता है। खेल-कूद ध्यान का केंद्रीय बिंदु बन चुका है, परिणाम स्वरूप खेलों पर अधिक से अधिक ध्यान दिया जाने लगा है। खेलों के संसार में सर्वोच्य स्थान प्राप्त करना प्रत्येक देश की प्रतिष्ठा का माध्यम बन चुका है। अर्थात प्रत्येक देश अन्य देशों के सामने अपनी छवि अच्छी बनाना चाहता है। यह उचित खेल माध्यम के बिना संभव नहीं है, अर्थात उचित खेल माध्यम व वातावरण का होना अतिआवश्यक है।
ख) उचित वृद्धि व विकास के लिए (For Proper Growth and Development) – खिलाड़ियों की उचित वृद्धि व विकास के लिए भी उचित खेल वातावरण का होना अतिआवश्यक होता है। यदि वातावरण अनुकूल नहीं होगा तो खिलाड़ी अपना बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पाएगा।
ग) शारीरिक स्वास्थय के खतरों को दूर रखने के लिए (For Propere Growth and Development) – उचित खेल वातावरण के अभाव में खिलाड़ियों को शारीरिक स्वास्थ संबंधी खतरे अधिक हो जाते हैं। उदाहरण के लिए समुद्र तल से अधिक ऊँचाई पर खेलों का अभ्यास करना खिलाड़ियों के लिए खतरनाक सिद्ध हो सकता है। उन्हें ऐसी जगह पर अभ्यास करने से हाइपोक्सिया (Hypixia) हो सकात है। साथ ही अन्य बीमारियाँ जैसे – माउंटेन सिकनेस, फेफड़ों का ओडिमा, दृष्टि की समस्या व लाल रक्त कणिकाओं की संरचना की असामान्यता आदि भी हो सकती हैं।
जो खिलाड़ी प्रदूषित वायु में खेलों का अभ्यास करते हैं, उन्हें विभिन्न प्रकार के शारीरिक स्वास्थ्य संबंधित खतरों का सामना करना पड़ता है। इससे गले तथा आँखों को हानि का खतरा अधिक बढ़ जाता है। इससे श्वसन संस्थान से संबंधित अनेक रोग, जैसे ब्रोंकाइटिस, अस्थमा, सार्स हो सकते हैं। कार्बन मोनोक्साइड विभिन्न कोशिकाओं तक ऑक्सीजन को ले जाने की क्षमता में कमी कर देती है। वायु में सीसे के कण होने से अंधापन, कोमा व अंत में मृत्यु भी हो सकती है।
पारे का भी स्नायु-संस्थान पर अत्यन्त हानिकाक प्रभाव पड़ता है। सीसे के कारण हृदयवाहिका रोग हो सकते हैं। वायु प्रदूषण अन्य व्यक्तियों की तुलना में खिलाड़ियों के लिए अधिक खथरनाक हो सकता है, क्योंकि खिलाड़ियों में खेल में भाग लेने के दौरान श्वसन की दर अधिक होती है। खिलाड़ियों पर इसके बुरे प्रभाव सन् 2004 में एथेंस ओलंपिक में देखे गए थे। वहाँ पर यूरोपीय देशों की अपेक्षा अधिक प्रदूषित वायु थी। अत्यधिक गर्मी में भी अभ्यास करना हानिकारक तथा कभी-कभी घातक हो सकता है। ऐसी दशा में, गर्मी में ऐंठन गर्मी से निढाल होना व गर्मी का आघात आदि हो सकते हैं। ठंडी जलवायु में अभ्यास के परिणाम स्वरूप फ्रॉस्टबाइट व कोशिकाओं का विनाश हो सकता है।
इन प्रत्येक कारणों से शारीरिक स्वास्थ्य संबंधी खतरों से दूर रहने के लिए उचित खेल वातावरण की आवश्यकता होती है।
घ) मानसिक स्वास्थ्य संबंधी खतरों से दूर रहने के लिए (For Avoiding Mental Health Risks) – सामाजिक वातावरण के रूप में, मानसिक स्वास्थ्य संबंधी खतरों से दूर रहने के लिए उचित खेल वातावरण की आवश्यकता होती है। अनुचित खेल वातावरण तनावयुक्त स्थितियाँ उत्पन्न कर सकता है जिसके कारण खिलाड़ी अवसाद ग्रस्त हो सकता है।
ड) खेलों में भागीदारी को बढ़ाने के लिए (For Evhancing Mass Participation) – खेलों में भागीदारी बढ़ाने अर्थात प्रतियोगियों की संख्या में वृद्धि करने के लिए उचित खेल वातावरण का होना अत्यन्त आवश्यक है। यदि खेलों का वातावरण उचित न हो, तो कोई भी व्यक्ति खेलों में भाग लेना पसंद नहीं करेगा।
अतः अब यह स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है की इन वजाहों से उचित खेल वातावरण का होना अति आवश्यक होता है।
खेल पर्यावरण और समाज Sports Environment and Society (भाग – 2)
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