भारत का आधुनिक इतिहास | Modern history of india
आर्य समाज (Arya Samaj)
आर्य समाज की स्थापना 1875 में महार्षि दयानंद सरस्वती द्वारा की गई थी। इस संगठन की स्थापना भारतीय समाज को सुधारने और पुननिर्माण करने के लिए व भारतीय संस्कृति को बचाने के उद्देश्य से की गई थी। आर्य समाज ने वेदों को अपनी शिक्षाओं का मौलिक स्रोत माना और धर्म, समाज, राजनीति, शिक्षा, और आर्थिक विकास के क्षेत्र में सुधारों की गहरी आवश्यकता को उजागर किया।
उस समय के सामाजिक, धार्मिक और आर्थिक संकटों के कारण, महार्षि दयानंद का मुख्य उद्देश्य था भारतीय समाज को धर्म, सामाजिक न्याय, और ग्रामीण विकास के माध्यम से सुधारना। उन्होंने वेदों को अपनी सार्थकता और प्रामाणिकता के साथ माना और उनके आधार पर समाज के निर्माण की प्रेरणा दी। उन्होंने समाज में धर्मिक जागरूकता, शिक्षा के महत्व, स्त्री शिक्षा, वेदों की शिक्षाएँ सभी वर्णों के लोगों तक पहुंचाने के लिए प्रचार किया।
महार्षि दयानंद सरस्वती कौन हैं? (Who is Maharishi Dayanand Saraswati?)
महार्षि दयानंद सरस्वती आर्य समाज के संस्थापक रहे, एक प्रमुख भारतीय समाज सुधारक, धार्मिक नेता, और धार्मिक विचारक थे। उनका जन्म 1824 ईसवी में मौरवी गुजरात में हुआ था। उनका वास्तविक नाम मुलशंकर था। उनके प्रथम गुरू पूर्णानंद जी ने उन्हें दयानंद सरस्वती नाम दिया था। दयानंद जी ने “वेदो की ओर लौटो” का नारा दिया साथ ही वेदो को भारत का आधार स्तंभ बनाया।
सत्यार्थ प्रकाश, अद्वैतमत का खंडन, और ऋग्वेद भाष्य दयानन्द सरस्वती की पुस्तकें हैं।
वे वेदों के प्रति अपनी अद्वितीय प्रेम और समर्पण के लिए प्रसिद्ध हैं। दयानंद सरस्वती ने वेदों के महत्व को पुनः स्थापित करने और हिन्दू धर्म में सुधार करने का कार्य किया।
उनके द्वारा स्थापित ‘आर्य समाज’ ने समाज में धार्मिक जागरूकता और सामाजिक सुधार के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने स्त्रियों की शिक्षा, वेदों की शिक्षा, भारतीय समाज के विकास के लिए शिक्षा के महत्व के समझने व समझाने का काम किया।
आर्य समाज के उद्देश्य (Objectives of Arya Samaj)
1) हिन्दू धर्म में व्याप्त दोषों को उजागर कर उन्हें दूर करना।
2) वैदिक धर्म को पुन: शुर्ध रूप से स्थापित करना।
3) भारत को सामाजिक, धार्मिक व राजनितिक रूप से एकसूत्र में बाँधना।
आर्य समाज विशेषताएँ (Arya Samaj Features)
आर्य समाज ने छूआछूत, जातिभेद, बाल विवाह का विरोध किया तथा कुछ शर्तों के साथ विधवा पुनर्विवाह की अनुमति तथा अंतर्जातिय विवाह का समर्थन किया। कर्म आधारित वर्ण व्यवस्था का समर्थन किया और जन्म आधारित वर्ण व्यवस्था का विरोध किया।
आर्य समाज की स्थापना बंबई, लाहौर दिल्ली आदि स्थानों पर की।
वेदों के प्रति आदर – आर्य समाज ने वेदों को अपनी शिक्षाओं और धार्मिक गुरुत्व का मूल स्रोत माना। वे वेदों को संस्कृत में अध्ययन करते और उनके सिद्धांतों को अपनाते थे।
समाज में समर्थ नागरिकता – आर्य समाज ने समाज में शिक्षा के महत्व का प्रसार किया और सभी वर्णों के लोगों को शिक्षित बनाने का प्रयास किया।
स्त्री शिक्षा – आर्य समाज ने स्त्रियों की शिक्षा और सामाजिक समानता को महत्व दिया और उन्हें वेदों की शिक्षा के लिए प्रोत्साहित किया।
धार्मिक सुधार – इस समाज ने हिन्दू धर्म में सुधार के लिए आंदोलन चलाया, जैसे कि वेदों के अध्ययन, एकता और पूजा में सामंजस्य को प्रोत्साहित किया। किसी कारण अन्य धर्म अपनाने वाले हिन्दुओं को दोबारा हिन्दु धर्म में वापसी के लिए प्रोत्साहित किया।
परिणाम स्वरूप यह सभी विशेषताएँ आर्य समाज को एक प्रमुख सामाजिक एवं धार्मिक संगठन बनाती हैं, जो समाज में सुधार और प्रगति के लिए प्रेरित करता है।
By Sunaina
- Study Material : नैतिक मूल्यों में परिवार की भूमिका | The Role of Family In Moral Values
- Study Material : नितिशास्त्र और मानवीय मूल्य | Ethics and Human Values
- Study Material : नितिशास्त्र का महत्व और समाज | Importance of Ethics and Society
- Political Science : आचार सहिंता व चुनाव के नियम | Code of Conduct and Election Rules
- Political Science : भारत में अपातकाल कब क्यों लगा | When and why was emergency imposed in India?