हड़प्पा सभ्यता Study Material इतिहास कक्षा – 12 (अध्याय – 1) History Class – 12 (Chapter – 1) | Study Material
हड़प्पा सभ्यता का संक्षिप्त सारांश (Brief Summary of Harappan Civilization)
हड़प्पा की मुहरें हड़प्पा सभ्यता की महत्वपूर्ण जानकारी देती हैं। सेलखड़ी नामक पत्थर से बनी इन मुहरों पर एक ऐसी लिपि के चिह्न मिले हैं जिसे अभी तक पढ़ा नहीं जा सका। हड़प्पा सभ्यता को सिंधु घाटी की सभ्यता भी कहा जाता है। इसका काल 2600 ई० पू० से 1900 ई० पू० के बीच निर्धारित किया गया है। इस सभ्यता के मुख्य केंद्र हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, लोथल, धौलावीरा, कालीबंगन आदि थे।
हड़प्पा सभ्यता से पूर्व की बस्तियाँ प्रायः छोटी होती थीं। इनमें कृषि तथा पशुपालन प्रचलित था।
अफ़गानिस्तान के शोतुंधई नामक पुरास्थल से हड़प्पा सभ्यता में नहरी सिंचाई के अवशेष मिले हैं। हड़प्पा के पुरास्थलों से मिले अनाज के दानों तथा पशु-पक्षियों की हड्डियों से हड़प्पाई लोगों के भोजन की जानकारी मिलती है।
हड़प्पा काल में बर्तन, पत्थर, धातु तथा मिट्टी से बनाए जाते थे। बलुआ पत्थर से बनी चक्कियों भी मिली हैं।
हड़प्पा सभ्यता का सबसे पुराना खोजा गया शहर हड़प्पा था परंतु सबसे महत्त्वपूर्ण शहर मोहनजोदड़ो था।
मोहनजोदड़ो एक नियोजित शहर था। यहाँ की गलियाँ तथा सड़कें एक-दूसरे को समकोण पर काटती थीं।
मकान पकी ईंटों के बने हुए थे जो नगर के निचले हिस्से में थे। गंदे पानी की निकासी के लिए नालियों बनी हुई थीं।
मोहनजोदड़ो के दुर्ग पर एक विशाल जलाशय, एक मालगोदाम तथा कुछ अन्य महत्त्वपूर्ण संरचनाएँ मिली हैं जिनका प्रयोग सार्वजनिक रूप से किया जाता था। हड़प्पा में कुछ शवाधान मिले हैं जिनमें मृतकों को दफनाया गया है। ये एक प्रकार के गर्त हैं जहाँ शर्तों के साथ दैनिक प्रयोग को कुछ अन्य वस्तुएँ भी रखी गई हैं।
हड़प्पा सभ्यता के शिल्पों में मनके बनाना, शंख की कटाई, धातु कर्म, मोहरें तथा बाट बनाना आदि शामिल थे। शंख से चूड़ियाँ, करछियाँ तथा पच्चीकारी की वस्तुएँ बनाई जाती थीं। शिल्प-उत्पादन के लिए केवल स्थानीय माल का ही प्रयोग नहीं होता था। इसके लिए पत्थर, अच्छी लकड़ी तथा धातु आदि कच्चे माल बाहर से मँगवाने पड़ते थे। पुरातत्वविदों ने राजस्थान के खेतड़ी क्षेत्र की संस्कृति को गणेश्वर-जोधपुरा संस्कृति का नाम दिया है। यहाँ ताँबे की वस्तुएँ बड़ी मात्रा में मिली हैं। मेसोपोटामिया के लेखों में वर्णित मेटा संभवतः हड़प्पाई क्षेत्र था। यहाँ से मेसोपोटामिया में कार्मिलियन लाजवर्द मणि, ताँबा, सोना आदि पदार्थ भेजे जाते थे।
हड़प्पा लिपि वर्णमालीय न होकर चित्रमय थी। यह संभवतः बाएँ से दाएँ लिखी जाती थी। हड़प्पा सभ्यता में शासक (राजा) की महत्त्वपूर्ण भूमिका थी। सभी जटिल निर्णय उसी के द्वारा लिए जाते थे। जलवायु परिवर्तन, लगातार बाढ़ें, नदियों का सूख जाना अथवा मार्ग बदल लेना आदि कारण हड़प्पा सभ्यता के अंत (पतन) का कारण बने।
सिंधु घाटी की सभ्यता की खोज में दो पुरातत्त्वविदों दयाराम साहनी तथा राखलदास बनर्जी का प्रमुख योगदान रहा।
जॉन मार्शल भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के डायरेक्टर जनरल थे। उन्होंने ही 1924 में सिंधु घाटी में एक नई सभ्यता की खोज की घोषणा की थी।
खुदाइयों में लाजवर्द मणि, जैस्पर, चाल्सेडनी तथा अन्य पत्थरों से बने छोटे-छोटे आकार मिले हैं। मैके के अनुसार या तो ये पूजे जाने वाले लिंग (शिवलिंग) थे या फिर पट्टों पर खेले जाने वाले खेलों में प्रयोग होने वाले मुहरें।
सिंधु घाटी के लोग मातृदेवी तथा आद्य शिव की पूजा करते थे।
विभाजन के पश्चात् सिंधु सभ्यता के प्रमुख स्थल पाकिस्तानी क्षेत्र में आ गए। इसलिए भारतीय पुरातत्वविदों ने भारत में पुरास्थलों को खोजने का प्रयास किया और कई स्थल खोज निकाले। यह खोज कार्य आज भी जारी है।
भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के पहले डायरेक्टर जनरल कनिंघम का भ्रम था कि भारतीय इतिहास का प्रारंभ गंगा घाटी में पनपे पहले शहरों के साथ हुआ था। इसलिए वे हड़प्या से मिली मुहर को देखकर भी हड़प्पा के महत्व को नहीं समझ पाए।
हड़प्पा सभ्यता से प्राप्त पत्थर की एक मूर्ति को ‘पुरोहित राजा’ कहा गया है। इसे यह नाम मेसोपोटामिया के पुरोहित राजा के आधार पर दिया गया है।
हड़प्पा सभ्यता में विनिमय वाटों की एक सूक्ष्म तथा परिशुद्ध प्रणाली द्वारा होता था। ये बाट चर्ट नामक पत्थर से बनाए जाते थे।
मुहरों पर जहाजों, नावों आदि के चित्र मिले हैं जो हड़प्पा सभ्यता के दूर के प्रदेशों से संपर्क का संकेत देते हैं।
काल-रेखा 1 – आरंभिक भारतीय पुरातत्व के प्रमुख काल-खंड (Timeline 1 – Major Periods of Early Indian Archeology)
20 लाख वर्ष (वर्तमान से पूर्व) – निम्न पुरापाषाण
80,000 – मध्य पुरापाषाण
35,000 – उच्च पुरापाषाण
12,000 – मध्य पुरापाषाण
10,000 – नवपाषाण (आरंभिक कृषक तथा पशुपालक)
6,000 – ताम्रपाषाण (ताँबे का पहली बार प्रयोग)
2600 ई० पू० – हड़प्पा सभ्यता
1000 ई० पू० – आरंभिक लौहकाल, महापाषाण शवाधान
600 ई० पू०-400 ई० पू० – आरंभिक ऐतिहासिक काल
सभी तिथियाँ अनुमानित हैं। इसके अतिरिक्त उपमहाद्वीप के अलग-अलग भागों में हुए विकास की प्रक्रिया में व्यापक विविधताएँ हैं। यहाँ दी गई तिथियाँ हर चरण के प्राचीनतम साक्ष्य को इंगित करती हैं।
काल-रेखा 2 – हड़प्पाई पुरातत्व के विकास के प्रमुख चरण (Timeline 2 – Major Stages in the Development of Harappan Archeology)
उन्नीसवीं शताब्दी (19th Century)
1875 – हड़प्पाई मुहर पर कनिंघम की रिपोर्ट
बीसवीं शताब्दी (20th Century)
1921 – माधो वत्स द्वारा हड़प्पा में उत्खननों का आरंभ
1925 – मोहनजोदड़ों में उत्खननों का प्रारंभ
1946 – आर०ई०एम० व्हीलर द्वारा हड़प्पा में उत्खनन
1955 – एस०आर० राव द्वारा लोथल में खुदाई का आरंभ
1960 – बी॰बी॰ लाल तथा बी०के० थापर के नेतृत्व में कालीबंगन में उत्खननों का आरंभ
1974 – एम०आर० मुगल द्वारा बहावलपुर में अंवेषणों का आरंभ
1980 – जर्मन-इतावली संयुक्त दल द्वारा मोहनजोदड़ो में सतह अंवेषणों का आरंभ
1986 – अमरीकी दल द्वारा हड़प्पा में उत्खननों का आरंभ
1990 – आर०एस० विष्ट द्वारा धौलावीरा में उत्खननों का आरंभ
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