TOP SHAYARI OF JOSH MALIHABADI | जोश मलीहाबादी की टॉप शायरी


दिल की चोटों ने कभी चैन से रहने न दिया
जब चली सर्द हवा मैं ने तुझे याद किया
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हद है अपनी तरफ़ नहीं मैं भी
और उन की तरफ़ ख़ुदाई है
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मेरे रोने का जिस में क़िस्सा है
उम्र का बेहतरीन हिस्सा है
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मुझ को तो होश नहीं तुम को ख़बर हो शायद
लोग कहते हैं कि तुम ने मुझे बर्बाद किया
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तबस्सुम की सज़ा कितनी कड़ी है
गुलों को खिल के मुरझाना पड़ा है
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काम है मेरा तग़य्युर नाम है मेरा शबाब
मेरा ना’रा इंक़िलाब ओ इंक़िलाब ओ इंक़िलाब
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वहाँ से है मिरी हिम्मत की इब्तिदा वल्लाह
जो इंतिहा है तिरे सब्र आज़माने की
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किसी का अहद-ए-जवानी में पारसा होना
क़सम ख़ुदा की ये तौहीन है जवानी की
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इंसान के लहू को पियो इज़्न-ए-आम है
अंगूर की शराब का पीना हराम है
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इस दिल में तिरे हुस्न की वो जल्वागरी है
जो देखे है कहता है कि शीशे में परी है
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आड़े आया न कोई मुश्किल में
मशवरे दे के हट गए अहबाब
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इस का रोना नहीं क्यूँ तुम ने किया दिल बर्बाद
इस का ग़म है कि बहुत देर में बर्बाद किया
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सुबूत है ये मोहब्बत की सादा-लौही का
जब उस ने वादा किया हम ने ए’तिबार किया
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वो करें भी तो किन अल्फ़ाज़ में तेरा शिकवा
जिन को तेरी निगह-ए-लुत्फ़ ने बर्बाद किया
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हम ऐसे अहल-ए-नज़र को सुबूत-ए-हक़ के लिए
अगर रसूल न होते तो सुब्ह काफ़ी थी
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अब तक न ख़बर थी मुझे उजड़े हुए घर की
वो आए तो घर बे-सर-ओ-सामाँ नज़र आया
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सोज़-ए-ग़म दे के मुझे उस ने ये इरशाद किया
जा तुझे कशमकश-ए-दहर से आज़ाद किया
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इतना मानूस हूँ फ़ितरत से कली जब चटकी
झुक के मैं ने ये कहा मुझ से कुछ इरशाद किया?
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इक न इक ज़ुल्मत से जब वाबस्ता रहना है तो ‘जोश’
ज़िंदगी पर साया-ए-ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ क्यूँ न हो
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जितने गदा-नवाज़ थे कब के गुज़र चुके
अब क्यूँ बिछाए बैठे हैं हम बोरिया न पूछ
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By Gaurav Joshi