कई भूमिकाओं में रहे तात्या टोपे
महाराष्ट्र के तात्या टोपे का असली नाम रामचंद्र पांडुरंग टोपे था। 1857 में जब मंगल पांडे ने अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया तो नाना साहेब तात्या टोपे, रानी लक्ष्मीबाई, अवध के नवाब और मुगल शासकों ने भी बुंदेलखंड में ब्रिटिश शासकों के खिलाफ विद्रोह कर दिया। इस विद्रोह का असर धीरे-धीरे साउथ इंडिया तक भी पहुंचा। तात्या टोपे ने कई भूमिकाएं निभाईं। वे नाना साहब के दोस्त, दीवान, प्रधानमंत्री और सेना प्रमुख के पदों पर भी अपनी सेवाएं देते रहें।
उन्हें सेना के नेतृत्व का कोई भी अनुभव नहीं था लेकिन वे लगातार कोशिश करते रहे और यह भी प्राप्त कर लिया। जब 1857 में दिल्ली में विद्रोह हुआ तो लखनऊ, झांसी और ग्वालियर जैसे साम्राज्य भी 1858 में आजाद हो गए। इसके साथ ही दिल्ली, कानपुर, आजमगढ़, गोंडा जैसे इलाके भी अंग्रेजी हुकूमत से पूरी तरह से मुक्त हो गए थे। लेकिन झांसी की रानी लक्ष्मीबाई को हार का सामना करना पड़ा था।
नाना साहेब की सेना को संभाला
तात्या टोपे ने नाना साहेब की सेना को पूरी तरह से संभाला था। टोपे ही सेना में सैनिकों की नियुक्ति, प्रशासन और उनके वेतन का पूरा ब्यौरा रखते थे और यह सब उन्ही की देखरेख में हो रहा था। उन्हें बेहद सम्मान की नजर से देखा जाता था। वे तेजी से सभी फैसले लेते थे। जब रानी लक्ष्मीबाई और अली बहादुर पकड़े गए तो अंग्रेजी सेना ने दस-दस हजार के इनाम की घोषणा की थी।