Infertility Social Stigma, International Women’s Day : इनफर्टिलिटी में औरतों को सुनने पड़ते हैं ताने, गायनेकोलॉजिस्‍ट ने बताया जिंदगी बेहतर करने का तरीका

आज बड़ी संख्‍या में महिलाएं इनफर्टिलिटी का शिकार हो रही हैं। ऐसी कई औरतें हैं जो शादी के कई साल बाद भी कंसीव नहीं कर पाती हैं और उन्‍हें दवाओं और फर्टिलिटी ट्रीटमेंट का सहारा लेना पड़ता है। अक्‍सर इन महिलाओं को समाज की अवहेलना का भी शिकार होना पड़ता है। किसी भी महिला के लिए इनफर्टिलिटी किसी श्राप से कम नहीं होती है और इस स्थिति में उसे अपनी मानसिक चुनौतियों के साथ-साथ समाज के तानों और अवहेलना को भी झेलना पड़ता है।
हर साल 8 मार्च को इंटरनेशनल वुमेंस डे (International Women’s Day) मनाया जाता है और महिलाओं को सशक्‍त करने के लिए आज हैदराबाद के बंजारा हिल्‍स में स्थित केयर हॉस्‍पीटल की गायनेकोलॉजिस्‍ट डॉक्‍टर एम. राजिनी हमें बता रही हैं कि इनफर्टिलिटी से जूझ रही औरतों को क्‍या करना चाहिए या इस स्थिति को किस तरह हैंडल करना चाहिए।

जटिल समस्‍या है इनफर्टिलिटी

बांझपन एक जटिल स्थिति है जो बड़ी संख्या में लोगों को प्रभावित कर रही है। इनफर्टिलिटी के साथ एक सामाजिक कलंक भी जुड़ा हुआ है और लोगों में इससे प्रभावित लोगों के लिए समझ और सपोर्ट की कमी देखी जाती है। डॉक्‍टर राजिनी कहती हैं कि इस मुद्दे को संबोधित करना और जागरूकता, शिक्षा और सपोर्ट को बढ़ावा देना डॉक्‍टरों की जिम्मेदारी है।

क्‍या करना चाहिए

बांझपन को अक्‍सर सामाजिक कलंक समझा जाता है और इस तरह की धारणा को दूर करने के लिए डॉक्‍टरों और आम लोगों, दोनों को बांझपन के कारणों, निदान और उपलब्ध उपचारों के बारे में शिक्षित करने पर ध्यान देना चाहिए। इसमें इनफर्टिलिटी पर किए गए नवीनतम शोध निष्कर्षों पर अप-टू-डेट जानकारी प्रदान करने के साथ-साथ औरतों और कपल्‍स पर बांझपन के भावनात्मक और शारीरिक प्रभाव को को कम करने की कोशिश करनी चाहिए।

सपोर्ट ग्रुप बनाने से बनेगी बात

लोग इनफर्टिलिटी की वजह से अपनी जिंदगी में आए तूफान या परेशानियों पर खुलकर बात कर सकें, इसके लिए सुरक्षित माहौल बनाने की भी जरूरत है। डॉक्‍टर होने के नाते हम इमोशनल सपोर्ट और सपोर्ट ग्रुप और ऑनलाइन फोरम जैसी सुविधाएं उपलब्‍ध करवाते हैं ताकि लोग अपने मन की बात खुलकर कह सकें।
इसके अलावा इनफर्टिलिटी को लेकर लोगों की नकारात्‍मक धारणा और विचारों को भी बदलने की जरूरत है। डॉक्‍टर कहती हैं कि इसके लिए हम उन नीतियों की वकालत कर सकते हैं जो बांझपन से प्रभावित लोगों का समर्थन करती हैं और सकारात्मक भाषा को बढ़ावा देकर बांझपन का अनुभव करने वाले लोगों के प्रति सम्मानजनक और संवेदनशील हैं।

मिलकर काम करना होगा

कुल मिलाकर इनफर्टिलिटी को लेकर चल रहे सोशल स्टिग्‍मा यानि सामाजिक कलंक से उबरने के लिए डॉक्‍टरों, पॉलिसी बनाने वालों और सोसायटी को भी मिलकर काम करना होगा। जागरूकता बढ़ाकर, सपोर्ट देकर और पॉजिटिव रवैया अपनाकर इनफर्टिलिटी का‍ शिकार हुए लोगों के लिए एक सुरक्षित माहौल बनाया जा सकता है।

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