वसीम बरेलवी की टॉप शायरी
TOP SHAYARI of Waseem Barelvi
Waseem Barelvi Shayari
जहाँ रहेगा वहीं रौशनी लुटाएगा
किसी चराग़ का अपना मकाँ नहीं होता
—
वो झूट बोल रहा था बड़े सलीक़े से
मैं ए’तिबार न करता तो और क्या करता
—
तुझे पाने की कोशिश में कुछ इतना खो चुका हूँ मैं
कि तू मिल भी अगर जाए तो अब मिलने का ग़म होगा
—
रात तो वक़्त की पाबंद है ढल जाएगी
देखना ये है चराग़ों का सफ़र कितना है
—
वैसे तो इक आँसू ही बहा कर मुझे ले जाए
ऐसे कोई तूफ़ान हिला भी नहीं सकता
—
मोहब्बत में बिछड़ने का हुनर सब को नहीं आता
किसी को छोड़ना हो तो मुलाक़ातें बड़ी करना
—
शाम तक सुब्ह की नज़रों से उतर जाते हैं
इतने समझौतों पे जीते हैं कि मर जाते हैं
—
ऐसे रिश्ते का भरम रखना कोई खेल नहीं
तेरा होना भी नहीं और तिरा कहलाना भी
—
मैं ने चाहा है तुझे आम से इंसाँ की तरह
तू मिरा ख़्वाब नहीं है जो बिखर जाएगा
—
हमारे घर का पता पूछने से क्या हासिल
उदासियों की कोई शहरियत नहीं होती
—
मुसलसल हादसों से बस मुझे इतनी शिकायत है
कि ये आँसू बहाने की भी तो मोहलत नहीं देते
—
बहुत से ख़्वाब देखोगे तो आँखें
तुम्हारा साथ देना छोड़ देंगी
—
मैं जिन दिनों तिरे बारे में सोचता हूँ बहुत
उन्हीं दिनों तो ये दुनिया समझ में आती है
—
जो मुझ में तुझ में चला आ रहा है बरसों से
कहीं हयात इसी फ़ासले का नाम न हो
—
मैं उस को आँसुओं से लिख रहा हूँ
कि मेरे ब’अद कोई पढ़ न पाए
—
भरे मकाँ का भी अपना नशा है क्या जाने
शराब-ख़ाने में रातें गुज़ारने वाला
—
तिरे ख़याल के हाथों कुछ ऐसा बिखरा हूँ
कि जैसे बच्चा किताबें इधर उधर कर दे
—
क्या दुख है समुंदर को बता भी नहीं सकता
आँसू की तरह आँख तक आ भी नहीं सकता
—
थके-हारे परिंदे जब बसेरे के लिए लौटें
सलीक़ा-मंद शाख़ों का लचक जाना ज़रूरी है
—
ये किस मक़ाम पे लाई है मेरी तन्हाई
कि मुझ से आज कोई बद-गुमाँ नहीं होता
—
किसी से कोई भी उम्मीद रखना छोड़ कर देखो
तो ये रिश्ते निभाना किस क़दर आसान हो जाये
—
छोटी-छोटी बातें करके बड़े कहाँ हो जाओगे
पतली गलियों से निकलो तो खुली सड़क पर आओगे
—
तुम्हारा प्यार तो सांसों में सांस लेता है
जो होता नशा तो इक दिन उतर नहीं जाता
—
क्या बताऊँ ,कैसा ख़ुद को दरबदर मैंने किया
उम्र -भर किस – किसके हिस्से का सफ़र मैंने किया
तू तो नफरत भी न कर पायेगा इस शिद्दत के साथ
जिस बला का प्यार तुझसे बे-ख़बर मैंने किया
—
अपनी इस आदत पे ही इक रोज़ मारे जाएँगे,
कोई दर खोले न खोले हम पुकारे जाएँगे
—
मोहब्बत के घरों के कच्चे-पन को ये कहाँ समझें
इन आँखों को तो बस आता है बरसातें बड़ी करना
—
तेरी नफरतों को प्यार की खुशबु बना देता,
मेरे बस में अगर होता तुझे उर्दू सीखा देता
—
धूप के एक ही मौसम ने जिन्हें तोड़ दिया,
इतने नाज़ुक भी ये रिश्ते न बनाये होते
—
कुछ तो कर आदाबे-महफ़िल का लिहाज़.
यार, ये पहलू बदलना छोड़ दे
—
खुद को मनवाने का मुझको भी हुनर आता है
मैं वह कतरा हूं समंदर मेरे घर आता है
—
क्या दुःख है समन्दर को बता भी नहीं सकता
आंसू की तरह आँख तक आ भी नहीं सकता.
तू छोड़ रहा है तो ख़ता इसमें तेरी क्या
हर शख्स मेरा साथ निभा भी नहीं सकता
—
यह सोच कर कोई अहदे-वफ़ा करो हमसे,
हम एक वादे पे उम्रें गुज़ार देते हैं
—
ज़रा सा क़तरा कहीं आज अगर उभरता है
समुंदरों ही के लहजे में बात करता है
—
दुख अपना अगर हम को बताना नहीं आता,
तुम को भी तो अंदाज़ा लगाना नहीं आता
—
आसमाँ इतनी बुलंदी पे जो इतराता है,
भूल जाता है ज़मीं से ही नज़र आता है
—
न पाने से किसी के है न कुछ खोने से मतलब है
ये दुनिया है,, इसे तो कुछ न कुछ होने से मतलब है
—
वो झूट बोल रहा था बड़े सलीक़े से,
मैं ए’तिबार न करता तो और क्या करता
—
झूठ वाले कहीं से कहीं बढ़ गये,
और मैं था कि सच बोलता रह गया
—
रात के टुकड़ों पे पलना छोड़ दे,
शमा से कहना के जलना छोड़ दे
—
दूर से ही बस दरिया दरिया लगता है,
डूब के देखो कितना प्यासा लगता है
—
चाहे जितना भी बिगड़ जाए ज़माने का चलन,
झूठ से हारते देखा नहीं सच्चाई को
—
बहुत से ख़्वाब देखोगे तो आँखें,
तुम्हारा साथ देना छोड़ देंगी
—
मुसलसल हादसों से बस मुझे इतनी शिकायत है,
कि ये आँसू बहाने की भी तो मोहलत नहीं देते
—
आपको देख कर देखता रह गया,
क्या कहूँ और कहने को क्या रह गया.
आते-आते मेरा नाम-सा रह गया,
उस के होंठों पे कुछ काँपता रह गया.
वो मेरे सामने ही गया और मैं,
रास्ते की तरह देखता रह गया.
आँधियों के इरादे तो अच्छे न थे,
ये दिया कैसे जलता हुआ रह गया
—
इन्हें तो ख़ाक में मिलना ही था कि मेरे थे,
ये अश्क कौन से ऊँचे घराने वाले थे
—
हँसी जब आये, किसी बात पर ही आती है,
उदास होने का अक्सर सबब नहीं होता
—
मेरे होंठों पे अपनी प्यास रख दो और फिर सोचो?
कि इसके बाद भी दुनिया में कुछ पाना ज़रूरी है
—
अपने चेहरे से जो ज़ाहिर है छुपाएँ कैसे?
तेरी मर्ज़ी के मुताबिक़ नज़र आएँ कैसे?
—
ग़म और होता सुन के गर आते न वो ‘वसीम’
अच्छा है मेरे हाल की उन को ख़बर नहीं
—
कुछ है कि जो घर दे नहीं पाता है किसी को,
वर्ना कोई ऐसे तो सफ़र में नहीं रहता
—
मुश्किलें तो हर सफ़र का हुस्न हैं
कैसे कोई राह चलना छोड़ दे?
तुझसे उम्मीदे- वफ़ा बेकार है
कैसे इक मौसम बदलना छोड़ दे?
मैं तो ये हिम्मत दिखा पाया नहीं
तू ही मेरे साथ चलना छोड़ दे
—
शाम तक सुबह की नज़रों से उतर जाते हैं,
इतने समझौतों पे जीते हैं कि, मर जाते हैं
—
तलब की राह में पाने से पहले खोना पड़ता है,
बड़े सौदे नज़र में हो तो, छोटा होना पड़ता है
—
दूरी हुई ,तो उनसे करीब और हम हुए
ये कैसे फ़ासिले थे ,जो बढ़ने से कम हुए
—
तुम आ गए हो तो कुछ चाँदनी सी बातें हों,
ज़मीं पे चाँद कहाँ रोज़ रोज़ उतरता है
—
कौन सी बात कहाँ कैसे कही जाती है,
ये सलीक़ा हो तो, हर बात सुनी जाती है
—
हुस्न बाज़ार हुआ क्या कि हुनर ख़त्म हुआ
आया पलको पे तो आँसू का सफ़र ख़त्म हुआ
उम्र भर तुझसे बिछड़ने की कसक ही न गयी
कौन कहता है की मुहब्बत का असर ख़त्म हुआ
नयी कालोनी में बच्चों की ज़िदे ले तो गईं
बाप दादा का बनाया हुआ घर ख़त्म हुआ.
जा, हमेशा को मुझे छोड़ के जाने वाले
तुझ से हर लम्हा बिछड़ने का तो डर ख़त्म हुआ’
—
सभी रिश्ते गुलाबों की तरह ख़ुशबू नहीं देते
कुछ ऐसे भी तो होते हैं जो काँटे छोड़ जाते हैं
—
तुम मेरी तरफ़ देखना छोड़ो तो बताऊँ,
हर शख़्स तुम्हारी ही तरफ़ देख रहा है
—
कभी लफ़्ज़ों से गद्दारी न करना
ग़ज़ल पढ़ना ,अदाकारी न करना..
मेरे बच्चों के आंसू पोंछ देना
लिफ़ाफ़े का टिकट जारी न करना
—
ग़रीब लहरों पे पहरे बिठाये जाते हैं
समन्दरों की तलाशी कोई नहीं लेता
—
उसी को जीने का हक़ है जो इस ज़माने में,
इधर का लगता रहे और उधर का हो जाए
—
तुझे पाने की कोशिश में कुछ इतना खो चुका हूँ मैं.
कि तू मिल भी अगर जाए तो, अब मिलने का ग़म होगा
—
घर में एक शाम भी जीने का बहाना न मिले
सीरियल ख़त्म न हो जाए तो, खाना न मिले
—
मुझे पढ़ता कोई तो कैसे पढ़ता
मिरे चेहरे पे तुम लिक्खे हुए थे
—
ज़हन में पानी के बादल अगर आये होते
मैंने मिटटी के घरोंदे ना बनाये होते
डूबते शहर मैं मिटटी का मकान गिरता ही
तुम ये सब सोच के मेरी तरफ आये होते
धूप के शहर में इक उम्र ना जलना पड़ता
हम भी ए काश किसी पेड के साये होते
फल पडोसी के दरख्तों पे ना पकते तो “वसीम”
मेरे आँगन में ये पत्थर भी ना आये होते
—
कही-सुनी पे बहुत एतबार करने लगे
मेरे ही लोग मुझे संगसार करने लगे.
पुराने लोगों के दिल भी हैं ख़ुशबुओं की तरह
ज़रा किसी से मिले, एतबार करने लगे.
नए ज़माने से आँखें नहीं मिला पाये
तो लोग गुज़रे ज़माने से प्यार करने लगे.
कोई इशारा, दिलासा न कोई वादा मगर
जब आई शाम तेरा इंतज़ार करने लगे.
हमारी सादामिजाज़ी की दाद दे कि तुझे
बगैर परखे तेरा एतबार करने लगे
—
उसूलों पे जहाँ आँच आये टकराना ज़रूरी है
जो ज़िन्दा हों तो फिर ज़िन्दा नज़र आना ज़रूरी है.
नई उम्रों की ख़ुदमुख़्तारियों को कौन समझाये
कहाँ से बच के चलना है कहाँ जाना ज़रूरी है.
थके हारे परिन्दे जब बसेरे के लिये लौटें
सलीक़ामन्द शाख़ों का लचक जाना ज़रूरी है.
बहुत बेबाक आँखों में त’अल्लुक़ टिक नहीं पाता
मुहब्बत में कशिश रखने को शर्माना ज़रूरी है.
सलीक़ा ही नहीं शायद उसे महसूस करने का
जो कहता है ख़ुदा है तो नज़र आना ज़रूरी है.
मेरे होंठों पे अपनी प्यास रख दो और फिर सोचो
कि इसके बाद भी दुनिया में कुछ पाना ज़रूरी है
—
तुम्हारी राह में मिट्टी के घर नहीं आते
इसीलिए तो तुम्हें हम नज़र नहीं आते
—
अपने हर इक लफ़्ज़ का ख़ुद आईना हो जाऊँगा
उसको छोटा कह के मैं कैसे बड़ा हो जाऊँगा
— Wasim Barelvi Shayari वसीम बरेलवी शायरी इन हिंदी —