मिर्ज़ा ग़ालिब के टॉप शेर
शेर
नबंधे तिश्नगी-ए-ज़ौक़ केमज़मूँ ‘ग़ालिब’
गरचेदिल खोल के दरिया कोभी साहिल बाँधा
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
मुज़्महिलहो गए क़वा ग़ालिब
वोअनासिर में ए’तिदाल कहाँ
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
‘ग़ालिब’ अपना ये अक़ीदा हैब-क़ौल-ए-‘नासिख़’
आपबे-बहरा है जो मो’तक़िद-ए-‘मीर’ नहीं
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
सादिक़हूँ अपने क़ौल का ‘ग़ालिब’ ख़ुदा गवाह
कहताहूँ सच कि झूटकी आदत नहीं मुझे
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
कहाँमय-ख़ाने का दरवाज़ा ‘ग़ालिब’ और कहाँ वाइज़
परइतना जानते हैं कल वो जाताथा कि हम निकले
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
बे-ख़ुदी बे-सबब नहीं’ग़ालिब’
कुछतो है जिस कीपर्दा-दारी है
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
बस-कि हूँ ‘ग़ालिब’ असीरी में भी आतिश ज़ेर-ए-पा
मू-ए-आतिश दीदाहै हल्क़ा मिरी ज़ंजीर का
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
इश्क़पर ज़ोर नहीं है ये वोआतिश ‘ग़ालिब’
किलगाए न लगे औरबुझाए न बने
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
हैफ़उस चार गिरह कपड़े की क़िस्मत ‘ग़ालिब’
जिसकी क़िस्मत में हो आशिक़ कागिरेबाँ होना
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
आएहै बेकसी-ए-इश्क़ पेरोना ‘ग़ालिब’
किसके घर जाएगा सैलाब-ए-बला मेरेबअ’द
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
क़यामतहै कि होवे मुद्दईका हम-सफ़र ‘ग़ालिब’
वोकाफ़िर जो ख़ुदा कोभी न सौंपा जाएहै मुझ से
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
जबतवक़्क़ो ही उठ गई’ग़ालिब’
क्यूँकिसी का गिला करेकोई
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
तूने क़सम मय-कशी कीखाई है ‘ग़ालिब’
तेरीक़सम का कुछ ए’तिबार नहीं है
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
‘ग़ालिब’ न कर हुज़ूर मेंतू बार बार अर्ज़
ज़ाहिरहै तेरा हाल सब उन परकहे बग़ैर
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
ज़िंदगीअपनी जब इस शक्लसे गुज़री ‘ग़ालिब’
हमभी क्या याद करेंगे कि ख़ुदा रखतेथे
मिर्ज़ाग़ालिब
अप्रचलितशेर
तहरीरहै ये ‘ग़ालिब’-ए-यज़्दाँ-परस्तकी
तारीख़उस की आज नौवींहै अगस्त की
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
‘ग़ालिब’ हमें न छेड़ किफिर जोश-ए-अश्क से
बैठेहैं हम तहय्या-ए-तूफ़ाँ किए हुए
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
‘ग़ालिब’ बुरा न मान जोवाइज़ बुरा कहे
ऐसाभी कोई है कि सबअच्छा कहें जिसे
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
रखियो’ग़ालिब’ मुझे इस तल्ख़-नवाईमें मुआफ़
आजकुछ दर्द मिरे दिल में सिवा होता है
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
थीख़बर गर्म कि ‘ग़ालिब’ के उड़ेंगे पुर्ज़े
देखनेहम भी गए थेप तमाशा न हुआ
मिर्ज़ाग़ालिब
अप्रचलितशेर
जोहद-ए-तक़्वा अदान होवे तो अपना मज़हबयही है ‘ग़ालिब’
हवसन रह जाए कोईबाक़ी गुनाह कीजे तो ख़ूब कीजे
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
येमसाईल-ए-तसव्वुफ़ येतिरा बयान ‘ग़ालिब’
तुझेहम वली समझते जो न बादा-ख़्वार होता
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
आही जाता वो राह पर’ग़ालिब’
कोईदिन और भी जिएहोते
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
अदा-ए-ख़ास से’ग़ालिब’ हुआ है नुक्ता-सरा
सला-ए-आम हैयारान-ए-नुक्ता-दाँके लिए
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
उसअंजुमन-ए-नाज़ कीक्या बात है ‘ग़ालिब’
हमभी गए वाँ औरतिरी तक़दीर को रो आए
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
मैंभला कब था सुख़न-गोई पे माइल ‘ग़ालिब’
शेरने की ये तमन्नाके बने फ़न मेरा
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
बनाकर फ़क़ीरों का हम भेस’ग़ालिब’
तमाशा-ए-अहल-ए-करम देखते हैं
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
इश्क़ने ‘ग़ालिब’ निकम्मा कर दिया
वर्नाहम भी आदमी थेकाम के
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
होचुकीं ‘ग़ालिब’ बलाएँ सब तमाम
एकमर्ग-ए-ना-गहानीऔर है
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
काबाकिस मुँह से जाओगे ‘ग़ालिब’
शर्मतुम को मगर नहींआती
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
ताबलाए ही बनेगी ‘ग़ालिब’
वाक़िआसख़्त है और जानअज़ीज़
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
मैंने माना कि कुछ नहीं’ग़ालिब’
मुफ़्तहाथ आए तो बुराक्या है
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
‘ग़ालिब’ तिरा अहवाल सुना देंगे हम उन को
वोसुन के बुला लेंये इजारा नहीं करते
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
पूछतेहैं वो कि ‘ग़ालिब’ कौन है
कोईबतलाओ कि हम बतलाएँक्या
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
शेर’ग़ालिब’ का नहीं वहीये तस्लीम मगर
ब-ख़ुदा तुम ही बता दोनहीं लगता इल्हाम
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
वोतबस्सुम है कि ‘ग़ालिब’ की तरह-दार ग़ज़ल
देरतक उस की बलाग़तको पढ़ा करते हैं
आल-ए-अहमद सूरूर
शेर
‘ग़ालिब’ वो शख़्स था हमा-दाँजिस के फ़ैज़ से
हमसे हज़ार हेच-मदाँ नामवर हुए
हरगोपालतुफ्ता
शेर
रेख़्तेके तुम्हीं उस्ताद नहीं हो ‘ग़ालिब’
कहतेहैं अगले ज़माने में कोई ‘मीर’ भी था
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
दिलमें फिर गिर्ये ने इक शोरउठाया ‘ग़ालिब’
आहजो क़तरा न निकला थासो तूफ़ाँ निकला
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
होगाकोई ऐसा भी कि ‘ग़ालिब’ को न जाने
शाइरतो वो अच्छा हैप बदनाम बहुत है
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
‘ग़ालिब’ तिरी ज़मीन पे लिक्खी तोहै ग़ज़ल
तेरेक़द-ए-सुखन केबराबर नहीं हूँ मैं
अज्ञात
शेर
हुईमुद्दत कि ‘ग़ालिब’ मर गया परयाद आता है
वोहर इक बात परकहना कि यूँ होतातो क्या होता
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
ग़ालिबऔर मीरज़ा ‘यगाना’ का
आजक्या फ़ैसला करे कोई
यगानाचंगेज़ी
शेर
‘साज़’ जब खुला हम पर शेरकोई ‘ग़ालिब’ का
हमने गोया बातिन का इक सुराग़सा पाया
अब्दुलअहद साज़
शेर
‘ग़ालिब’-ए-दाना सेपूछो इश्क़ में पड़ कर सलीम
एकमाक़ूल आदमी कैसे निकम्मा हो गया
सरदारसलीम
शेर
‘ग़ालिब’ छुटी शराब पर अब भीकभी कभी
पीताहूँ रोज़-ए-अब्र ओशब-ए-माहताब में
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
साथ’ग़ालिब’ के गई फ़िक्रकी गहराई भी
औरलहजा भी गया ‘मीर-तक़ी-मीर’ के साथ
राजेशरेड्डी
शेर
‘ग़ालिब’-ए-ख़स्ता केबग़ैर कौन से काम बंदहैं
रोइएज़ार ज़ार क्या कीजिए हाए हाए क्यूँ
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
ज़ुल्मपर ज़ुल्म आ गए ग़ालिब
आबलेआबलों को छोड़ गए
मंज़रलखनवी
शेर
अबन ‘ग़ालिब’ से शिकायत हैन शिकवा ‘मीर’ का
बनगया मैं भी निशाना रेख़्ताके तीर का
मोहम्मदअल्वी
शेर
गंजीना-ए-मअ’नीका तिलिस्म उस को समझिए
जोलफ़्ज़ कि ‘ग़ालिब’ मिरे अशआर में आवे
मिर्ज़ाग़ालिब
अप्रचलितशेर
मय-कशी को न समझबे-हासिल
बादा’ग़ालिब’ अरक़-ए-बेद नहीं
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
कुछतो पढ़िए कि लोग कहतेहैं
आज’ग़ालिब’ ग़ज़ल-सरा न हुआ
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
हुआहै शह का मुसाहिबफिरे है इतराता
वगरनाशहर में ‘ग़ालिब’ की आबरू क्याहै
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
हैंऔर भी दुनिया मेंसुख़न-वर बहुत अच्छे
कहतेहैं कि ‘ग़ालिब’ का है अंदाज़-ए-बयाँ और
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
आतेहैं ग़ैब से ये मज़ामींख़याल में
‘ग़ालिब’ सरीर-ए-ख़ामा नवा-ए-सरोश है
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
हमकहाँ के दाना थेकिस हुनर में यकता थे
बे-सबब हुआ ‘ग़ालिब’ दुश्मन आसमाँ अपना
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
हामीभी न थे मुंकिर-ए-‘ग़ालिब’ भीनहीं थे
हमअहल-ए-तज़बज़ुब किसीजानिब भी नहीं थे
इफ़्तिख़ारआरिफ़
शेर
जोये कहे कि रेख़्ता क्यूँकेहो रश्क-ए-फ़ारसी
गुफ़्ता-ए-‘ग़ालिब’ एकबार पढ़ के उसे सुनाकि यूँ
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
हमको मालूम है जन्नत कीहक़ीक़त लेकिन
दिलके ख़ुश रखने को ‘ग़ालिब’ ये ख़याल अच्छाहै
मिर्ज़ाग़ालिब
अप्रचलितशेर
मिलेदो मुर्शिदों को क़ुदरत-ए-हक़ से हैं दोतालिब
निज़ाम-उद्दीन को ख़ुसरव सिराज-उद्दीन को ग़ालिब
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
जनाब-ए-‘कैफ़’ येदिल्ली है ‘मीर’ ओ ‘ग़ालिब’ की
यहाँकिसी की तरफ़-दारियाँनहीं चलतीं
कैफ़भोपाली
शेर
हम-अस्रों में ये छेड़ चलीआई है ‘अज़हर’
याँ’ज़ौक़’ ने ‘ग़ालिब’ को भी ग़ालिबनहीं समझा
अज़हरइनायती
शेर
अक्सरमिरे शेरों की सना करतेरहे हैं
वोलोग जो ग़ालिब केतरफ़-दार नहीं हैं
तालीफ़हैदर
शेर
‘अरीब’ देखो न इतराओ चंदशेरों पर
ग़ज़लवो फ़न है कि ‘ग़ालिब’ को तुम सलाम करो
सुलैमानअरीब
शेर
इक़रारमें कहाँ है इंकार कीसी सूरत
होताहै शौक़ ग़ालिब उस की नहींनहीं पर
मीरतक़ी मीर
शेर
‘हाली’ सुख़न में ‘शेफ़्ता’ से मुस्तफ़ीद है
‘ग़ालिब’ का मो’तक़िद हैमुक़ल्लिद है ‘मीर’ का
अल्ताफ़हुसैन हाली
शेर
सिर्फ़ज़फ़र ‘ताबिश’ हैं हम
‘ग़ालिब’ ‘मीर’ न ‘हाली’ हैं
ज़फ़रताबिश
शेर
क़िस्मतके बाज़ार से बस इकचीज़ ही तो लेसकते थे
तुमने ताज उठाया मैं ने ‘ग़ालिब’ का दीवान लिया
सय्यदनसीर शाह
शेर
तुमको दावा है सुख़न-फ़हमीका
जाओ’ग़ालिब’ के तरफ़-दारबनो
आदिलमंसूरी
शेर
रंगलाएगी हमारी तंग-दस्ती एक दिन
मिस्ल-ए-ग़ालिब ‘शाद’ गर सब कुछ उधारआता गया
शादआरफ़ी
शेर
कोईउम्मीद बर नहीं आती
कोईसूरत नज़र नहीं आती
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
चाहिएअच्छों को जितना चाहिए
येअगर चाहें तो फिर क्याचाहिए
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
ग़लती-हा-ए-मज़ामींमत पूछ
लोगनाले को रसा बाँधतेहैं
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
कोईवीरानी सी वीरानी है
दश्तको देख के घर यादआया
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
इब्न-ए-मरयम हुआकरे कोई
मेरेदुख की दवा करेकोई
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
तुमसलामत रहो हज़ार बरस
हरबरस के हों दिनपचास हज़ार
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
बोसाकैसा यही ग़नीमत है
किन समझे वो लज़्ज़त-ए-दुश्नाम
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
कबवो सुनता है कहानी मेरी
औरफिर वो भी ज़बानीमेरी
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
ज़िंदगीयूँ भी गुज़र हीजाती
क्यूँतिरा राहगुज़र याद आया
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
नसुनो गर बुरा कहेकोई
नकहो गर बुरा करेकोई
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
मरतेहैं आरज़ू में मरने की
मौतआती है पर नहींआती
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
हूँगिरफ़्तार-ए-उल्फ़त-ए-सय्याद
वर्नाबाक़ी है ताक़त-ए-परवाज़
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
हमभी तस्लीम की ख़ू डालेंगे
बे-नियाज़ी तिरी आदत ही सही
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
तूऔर आराइश-ए-ख़म-ए-काकुल
मैंऔर अंदेशा-हा-ए-दूर-दराज़
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
क़त्अकीजे न तअ’ल्लुक़हम से
कुछनहीं है तो अदावतही सही
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
गुंजाइश-ए-अदावत-ए-अग़्यार यक तरफ़
याँदिल में ज़ोफ़ से हवस-ए-यार भी नहीं
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
मौतका एक दिन मुअय्यनहै
नींदक्यूँ रात भर नहीं आती
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
जानतुम पर निसार करताहूँ
मैंनहीं जानता दुआ क्या है
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
तमाशाकि ऐ महव-ए-आईना-दारी
तुझेकिस तमन्ना से हम देखतेहैं
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
क्यावो नमरूद की ख़ुदाई थी
बंदगीमें मिरा भला न हुआ
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
इश्क़मुझ को नहीं वहशतही सही
मेरीवहशत तिरी शोहरत ही सही
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
दर्दमिन्नत-कश-ए-दवान हुआ
मैंन अच्छा हुआ बुरा न हुआ
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
जम्अकरते हो क्यूँ रक़ीबोंको
इकतमाशा हुआ गिला न हुआ
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
चाहतेहैं ख़ूब-रूयों को ‘असद’
आपकी सूरत तो देखा चाहिए
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
जहाँतेरा नक़्श-ए-क़दम देखतेहैं
ख़याबाँख़याबाँ इरम देखते हैं
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
दिल-ए-नादाँ तुझेहुआ क्या है
आख़िरइस दर्द की दवा क्याहै
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल हैदुनिया मिरे आगे
होताहै शब-ओ-रोज़तमाशा मिरे आगे
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
बातपर वाँ ज़बान कटती है
वोकहें और सुना करेकोई
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
फिरमुझे दीदा-ए-तर यादआया
दिलजिगर तिश्ना-ए-फ़रियाद आया
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
ए’तिबार-ए-इश्क़ कीख़ाना-ख़राबी देखना
ग़ैरने की आह लेकिनवो ख़फ़ा मुझ पर हुआ
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
आशिक़ीसब्र-तलब और तमन्ना बेताब
दिलका क्या रंग करूँ ख़ून-ए-जिगर होतेतक
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
वाइज़न तुम पियो न किसी कोपिला सको
क्याबात है तुम्हारी शराब-ए-तुहूर की
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
फिरउसी बेवफ़ा पे मरते हैं
फिरवही ज़िंदगी हमारी है
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
ग़ैरलें महफ़िल में बोसे जाम के
हमरहें यूँ तिश्ना-लब पैग़ाम के
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
हैकाएनात को हरकत तेरेज़ौक़ से
परतवसे आफ़्ताब के ज़र्रे मेंजान है
मिर्ज़ाग़ालिब
अप्रचलितशेर
तुमसलामत रहो क़यामत तक
दौलत-ओ-इज़्ज़-ओ-जाह रोज़-अफ़्ज़ूँ
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
रहमतअगर क़ुबूल करे क्या बईद है
शर्मिंदगीसे उज़्र न करना गुनाहका
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
ज़िंदगानीमें सभी रंग थे महरूमी के
तुझको देखा तो मैं एहसास-ए-ज़ियाँ सेनिकला
ग़ालिबअयाज़
शेर
रातदिन गर्दिश में हैं सात आसमाँ
होरहेगा कुछ न कुछ घबराएँक्या
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
जबकि तुझ बिन नहीं कोई मौजूद
फिरये हंगामा ऐ ख़ुदा क्याहै
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
अगरग़फ़लत से बाज़ आयाजफ़ा की
तलाफ़ीकी भी ज़ालिम नेतो क्या की
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
तुम्हारेदर से उठाए गएमलाल नहीं
वहाँतो छोड़ के आए हैंहम ग़ुबार अपना
ग़ालिबअयाज़
शेर
तमामउम्र उसे चाहना न था मुमकिन
कभीकभी तो वो इसदिल पे बार बनके रहा
ग़ालिबअयाज़
शेर
बार-हा देखी हैंउन की रंजिशें
परकुछ अब के सरगिरानीऔर है
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
फिरयही रुत हो ऐन मुमकिनहै
परतिरा इंतिज़ार हो कि नहो
ग़ालिबअयाज़
अप्रचलितशेर
सातजिल्दों का पार्सल पहुँचा
वाहक्या ख़ूब बर-महल पहुँचा
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
आतिश-ए-दोज़ख़ मेंये गर्मी कहाँ
सोज़-ए-ग़म-हा-ए-निहानी औरहै
मिर्ज़ाग़ालिब
अप्रचलितशेर
पीर-ओ-मुर्शिद मुआ’फ़ कीजिएगा
मैंने जमुना का कुछ नलिक्खा हाल
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
जानताहूँ सवाब-ए-ताअत-ओ-ज़ोहद
परतबीअत इधर नहीं आती
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
नश्शा-ए-रंग सेहै वाशुद-ए-गुल
मस्तकब बंद-ए-क़बा बाँधतेहैं
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
क्यूँकरउस बुत से रखूँ जानअज़ीज़
क्यानहीं है मुझे ईमानअज़ीज़
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
मैंने मजनूँ पे लड़कपन में’असद’
संगउठाया था कि सरयाद आया
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
तेशेबग़ैर मर न सकाकोहकन ‘असद’
सरगश्ता-ए-ख़ुमार-ए-रुसूम-ओ-क़ुयूद था
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
जज़्बा-ए-बे-इख़्तियार-ए-शौक़ देखाचाहिए
सीना-ए-शमशीर सेबाहर है दम शमशीरका
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
नाकामी-ए-निगाह हैबर्क़-ए-नज़ारा-सोज़
तूवो नहीं कि तुझ कोतमाशा करे कोई
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
सब्ज़ाओ गुल कहाँ से आए हैं
अब्रक्या चीज़ है हवा क्याहै
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
इकख़ूँ-चकाँ कफ़न में करोड़ों बनाओ हैं
पड़तीहै आँख तेरे शहीदों पे हूर की
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
कितनेशीरीं हैं तेरे लब कि रक़ीब
गालियाँखा के बे-मज़ान हुआ
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
उम्रभर देखा किए मरने की राह
मरगए पर देखिए दिखलाएँक्या
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
मुनहसिरमरने पे हो जिसकी उमीद
ना-उमीदी उस की देखाचाहिए
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
मैंभी मुँह में ज़बान रखता हूँ
काशपूछो कि मुद्दआ क्याहै
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
आगेआती थी हाल-ए-दिल पे हँसी
अबकिसी बात पर नहीं आती
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
दमलिया था न क़यामतने हनूज़
फिरतिरा वक़्त-ए-सफ़र यादआया
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
हरबुल-हवस ने हुस्न-परस्तीशिआ’र की
अबआबरू-ए-शेवा-ए-अहल-ए-नज़र गई
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
मेरीक़िस्मत में ग़म गर इतना था
दिलभी या-रब कईदिए होते
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
हैख़बर गर्म उन के आनेकी
आजही घर में बोरियान हुआ
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
विदाअओ वस्ल में हैं लज़्ज़तें जुदागाना
हज़ारबार तू जा सद-हज़ार बार आ जा
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
हमहैं मुश्ताक़ और वो बे-ज़ार
याइलाही ये माजरा क्याहै
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
कौनहै जो नहीं हैहाजत-मंद
किसकी हाजत रवा करे कोई
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
पिन्हाँथा दाम-ए-सख़्त क़रीबआशियान के
उड़नेन पाए थे कि गिरफ़्तारहम हुए
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
मैंऔर सद-हज़ार नवा-ए-जिगर-ख़राश
तूऔर एक वो ना-शुनीदन कि क्या कहूँ
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
लेतानहीं मिरे दिल-ए-आवारा कीख़बर
अबतक वो जानता हैकि मेरे ही पास है
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
जानदी दी हुई उसीकी थी
हक़तो यूँ है कि हक़अदा न हुआ
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
कहतेहैं जीते हैं उम्मीद पे लोग
हमको जीने की भी उम्मीदनहीं
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
हवसको है नशात-ए-कार क्या क्या
नहो मरना तो जीने कामज़ा क्या
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
हदचाहिए सज़ा में उक़ूबत के वास्ते
आख़िरगुनाहगार हूँ काफ़र नहीं हूँ मैं
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
नसताइश की तमन्ना नसिले की परवा
गरनहीं हैं मिरे अशआर में मअ’नी नसही
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
थाज़िंदगी में मर्ग का खटका लगाहुआ
उड़नेसे पेश-तर भी मिरारंग ज़र्द था
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
बहुतदिनों में तग़ाफ़ुल ने तेरे पैदाकी
वोइक निगह कि ब-ज़ाहिरनिगाह से कम है
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
जातेहुए कहते हो क़यामत कोमिलेंगे
क्याख़ूब क़यामत का है गोयाकोई दिन और
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
दैरनहीं हरम नहीं दर नहीं आस्ताँनहीं
बैठेहैं रहगुज़र पे हम ग़ैरहमें उठाए क्यूँ
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
नज़्ज़ारेने भी काम कियावाँ नक़ाब का
मस्तीसे हर निगह तिरेरुख़ पर बिखर गई
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
मज़ेजहान के अपनी नज़रमें ख़ाक नहीं
सिवाएख़ून-ए-जिगर सोजिगर में ख़ाक नहीं
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
अपनीहस्ती ही से होजो कुछ हो
आगहीगर नहीं ग़फ़लत ही सही
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
साएकी तरह साथ फिरें सर्व ओ सनोबर
तूइस क़द-ए-दिलकश सेजो गुलज़ार में आवे
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
हरीफ़-ए-मतलब-ए-मुश्किल नहीं फ़ुसून-ए-नियाज़
दुआक़ुबूल हो या रबकि उम्र-ए-ख़िज़्र दराज़!
मिर्ज़ाग़ालिब
अप्रचलितशेर
कोईइस का जवाब दोसाहब
साइलोंका सवाब लो साहब
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
कहतेहुए साक़ी से हया आतीहै वर्ना
हैयूँ कि मुझे दुर्द-ए-तह-ए-जाम बहुत है
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
आहको चाहिए इक उम्र असरहोते तक
कौनजीता है तिरी ज़ुल्फ़के सर होते तक
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
ढाँपाकफ़न ने दाग़-ए-उयूब-ए-बरहनगी
मैंवर्ना हर लिबास मेंनंग-ए-वजूद था
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
आईनाक्यूँ न दूँ कितमाशा कहें जिसे
ऐसाकहाँ से लाऊँ कितुझ सा कहें जिसे
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
काफ़ीहै निशानी तिरा छल्ले का न देना
ख़ालीमुझे दिखला के ब-वक़्त-ए-सफ़र अंगुश्त
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
ख़तलिखेंगे गरचे मतलब कुछ न हो
हमतो आशिक़ हैं तुम्हारे नाम के
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
मरतेमरते देखने की आरज़ू रहजाएगी
वाएनाकामी कि उस काफ़िरका ख़ंजर तेज़ है
मिर्ज़ाग़ालिब
अप्रचलितशेर
दिरम-ओ-दाम अपनेपास कहाँ
चीलके घोंसले में मास कहाँ
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
इश्क़से तबीअत ने ज़ीस्त कामज़ा पाया
दर्दकी दवा पाई दर्द-ए-बे-दवापाया
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
मुद्दतहुई है यार कोमेहमाँ किए हुए
जोश-ए-क़दह सेबज़्म चराग़ाँ किए हुए
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
हैकहाँ तमन्ना का दूसरा क़दमया रब
हमने दश्त-ए-इम्काँ कोएक नक़्श-ए-पा पाया
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
हमवहाँ हैं जहाँ से हम कोभी
कुछहमारी ख़बर नहीं आती
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
फिरदेखिए अंदाज़-ए-गुल-अफ़्शानी-ए-गुफ़्तार
रखदे कोई पैमाना-ए-सहबा मेरेआगे
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
रंगोंकी बारिशों से धुँदला गयाहै मंज़र
आयाहुआ है कोई तूफ़ानआइने में
ग़ालिबइरफ़ान
शेर
दोस्तग़म-ख़्वारी में मेरी सई फ़रमावेंगे क्या
ज़ख़्मके भरते तलक नाख़ुन न बढ़ जावेंगेक्या
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
एकहंगामे पे मौक़ूफ़ हैघर की रौनक़
नौहा-ए-ग़म हीसही नग़्मा-ए-शादी नसही
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
क़तराअपना भी हक़ीक़त मेंहै दरिया लेकिन
हमको तक़लीद-ए-तुनुक-ज़र्फ़ी-ए-मंसूर नहीं
मिर्ज़ाग़ालिब
अप्रचलितशेर
वली-अहदी में शाही हो मुबारक
इनायात-ए-इलाही होमुबारक
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
आगहीदाम-ए-शुनीदन जिसक़दर चाहे बिछाए
मुद्दआअन्क़ा है अपने आलम-ए-तक़रीर का
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
लिखतेरहे जुनूँ की हिकायात-ए-ख़ूँ-चकाँ
हर-चंद इस में हाथहमारे क़लम हुए
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
किससे महरूमी-ए-क़िस्मत कीशिकायत कीजे
हमने चाहा था कि मरजाएँ सो वो भीन हुआ
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
तिरेजवाहिर-ए-तरफ़-ए-कुलह को क्या देखें
हमऔज-ए-ताला-ए-लाला-ओ-गुहर कोदेखते हैं
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
नगुल-ए-नग़्मा हूँन पर्दा-ए-साज़
मैंहूँ अपनी शिकस्त की आवाज़
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
हैमुश्तमिल नुमूद-ए-सुवर परवजूद-ए-बहर
याँक्या धरा है क़तरा ओमौज-ओ-हबाब में
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
हर-चंद हो मुशाहिदा-ए-हक़ की गुफ़्तुगू
बनतीनहीं है बादा-ओ-साग़र कहे बग़ैर
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
अर्ज़-ए-नियाज़-ए-इश्क़ के क़ाबिल नहींरहा
जिसदिल पे नाज़ थामुझे वो दिल नहींरहा
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
हैआदमी बजाए ख़ुद इक महशर-ए-ख़याल
हमअंजुमन समझते हैं ख़ल्वत ही क्यूँ नहो
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
आजहम अपनी परेशानी-ए-ख़ातिर उनसे
कहनेजाते तो हैं परदेखिए क्या कहते हैं
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
हैपर-ए-सरहद-ए-इदराक से अपना मसजूद
क़िबलेको अहल-ए-नज़र क़िबला-नुमा कहते हैं
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
हरक़दम दूरी-ए-मंज़िल हैनुमायाँ मुझ से
मेरीरफ़्तार से भागे हैबयाबाँ मुझ से
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
दिल-ए-हर-क़तराहै साज़-ए-अनल-बहर
हमउस के हैं हमारापूछना क्या
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
शाहिद-ए-हस्ती-ए-मुतलक़ की कमर हैआलम
लोगकहते हैं कि है परहमें मंज़ूर नहीं
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
गोमैं रहा रहीन-ए-सितम-हा-ए-रोज़गार
लेकिनतिरे ख़याल से ग़ाफ़िल नहींरहा
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
दिलको नियाज़-ए-हसरत-ए-दीदार कर चुके
देखातो हम में ताक़त-ए-दीदार भीनहीं
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
अहल-ए-बीनश कोहै तूफ़ान-ए-हवादिस मकतब
लुत्मा-ए-मौज कमअज़ सैली-ए-उस्ताद नहीं
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
ज़मानासख़्त कम-आज़ार हैब-जान-ए-असद
वगरनाहम तो तवक़्क़ो ज़्यादारखते हैं
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
इशरत-ए-क़तरा हैदरिया में फ़ना हो जाना
दर्दका हद से गुज़रनाहै दवा हो जाना
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
बहराहूँ मैं तो चाहिए दूनाहो इल्तिफ़ात
सुनतानहीं हूँ बात मुकर्रर कहे बग़ैर
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
एकएक क़तरे का मुझे देनापड़ा हिसाब
ख़ून-ए-जिगर वदीअत-ए-मिज़्गान-ए-यार था
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
देमुझ को शिकायत कीइजाज़त कि सितमगर
कुछतुझ को मज़ा भीमिरे आज़ार में आवे
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
सुनतेहैं जो बहिश्त कीतारीफ़ सब दुरुस्त
लेकिनख़ुदा करे वो तिरा जल्वा-गाह हो
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
तुझसे तो कुछ कलामनहीं लेकिन ऐ नदीम
मेरासलाम कहियो अगर नामा-बर मिले
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
रगोंमें दौड़ते फिरने के हम नहींक़ाइल
जबआँख ही से नटपका तो फिर लहूक्या है
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
औरबाज़ार से ले आएअगर टूट गया
साग़र-ए-जम सेमिरा जाम-ए-सिफ़ाल अच्छाहै
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
हस्तीके मत फ़रेब मेंआ जाइयो ‘असद’
आलमतमाम हल्क़ा-ए-दाम-ए-ख़याल है
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
निस्यह-ओ-नक़्द-ए-दो-आलम कीहक़ीक़त मालूम
लेलिया मुझ से मिरी हिम्मत-ए-आली नेमुझे
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
हैकुछ ऐसी ही बात जोचुप हूँ
वर्नाक्या बात कर नहीं आती
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
देखिएपाते हैं उश्शाक़ बुतों से क्या फ़ैज़
इकबरहमन ने कहा हैकि ये साल अच्छाहै
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
हवाके होंट खुलें साअत-ए-कलाम तोआए
येरेत जैसा बदन आँधियों के काम तोआए
ग़ालिबअयाज़
शेर
सीखेहैं मह-रुख़ों केलिए हम मुसव्वरी
तक़रीबकुछ तो बहर-ए-मुलाक़ात चाहिए
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
बकरहा हूँ जुनूँ में क्या क्या कुछ
कुछन समझे ख़ुदा करे कोई
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
जानापड़ा रक़ीब के दर परहज़ार बार
ऐकाश जानता न तिरे रह-गुज़र को मैं
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
हमउस के जब्र काक़िस्सा तमाम चाहते हैं
औरउस की तेग़ हमाराज़वाल चाहती है
ग़ालिबअयाज़
शेर
पीजिस क़दर मिले शब-ए-महताबमें शराब
इसबलग़मी-मिज़ाज को गर्मी हीरास है
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
करेहै क़त्ल लगावट में तेरा रो देना
तिरीतरह कोई तेग़-ए-निगह कोआब तो दे
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
बस-कि दुश्वार हैहर काम का आसाँ होना
आदमीको भी मयस्सर नहींइंसाँ होना
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
रातपी ज़मज़म पे मय औरसुब्ह-दम
धोएधब्बे जामा-ए-एहराम के
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
खुलताकिसी पे क्यूँ मिरेदिल का मोआमला
शेरोंके इंतिख़ाब ने रुस्वा कियामुझे
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
ज़ोफ़से गिर्या मुबद्दल ब-दम-ए-सर्द हुआ
बावरआया हमें पानी का हवा होजाना
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
ज़हरमिलता ही नहीं मुझको सितमगर वर्ना
क्याक़सम है तिरे मिलनेकी कि खा भीन सकूँ
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
हमको उन से वफ़ाकी है उम्मीद
जोनहीं जानते वफ़ा क्या है
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
मैंना-मुराद दिल की तसल्ली कोक्या करूँ
मानाकि तेरे रुख़ से निगह कामयाबहै
मिर्ज़ाग़ालिब
अप्रचलितशेर
हातिफ़-ए-ग़ैब सुनके ये चीख़ा
उनकी तारीख़ मेरा तारीख़ा
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
हाँऐ फ़लक-ए-पीर जवाँथा अभी आरिफ़
क्यातेरा बिगड़ता जो न मरताकोई दिन और
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
हमने माना कि तग़ाफ़ुल नकरोगे लेकिन
ख़ाकहो जाएँगे हम तुम कोख़बर होते तक
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
रौमें है रख़्श-ए-उम्र कहाँ देखिए थमे
नेहाथ बाग पर है नपा है रिकाब में
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
अपनानहीं ये शेवा किआराम से बैठें
उसदर पे नहीं बारतो का’बे हीको हो आए
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
आशिक़हूँ प माशूक़-फ़रेबीहै मिरा काम
मजनूँको बुरा कहती है लैला मिरेआगे
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
शोरीदगीके हाथ से है सरवबाल-ए-दोश
सहरामें ऐ ख़ुदा कोईदीवार भी नहीं
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
ख़ुदायाजज़्बा-ए-दिल कीमगर तासीर उल्टी है
किजितना खींचता हूँ और खिंचता जाएहै मुझ से
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
जिसज़ख़्म की हो सकतीहो तदबीर रफ़ू की
लिखदीजियो या रब उसेक़िस्मत में अदू की
मिर्ज़ाग़ालिब
अप्रचलितशेर
तर्ज़-ए-बे-दिलमें रेख़्ता कहना
असदअल्लाह ख़ाँ क़यामत है
मिर्ज़ाग़ालिब
अप्रचलितशेर
गातीथीं शिम्रो की बेगम तनाहायाहू
दूधमें पक्के थे शलग़म तनाहायाहू
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
काँटोंकी ज़बाँ सूख गई प्यास सेया रब
इकआबला-पा वादी-ए-पुर-ख़ार में आवे
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
कमनहीं जल्वागरी में, तिरे कूचे से बहिश्त
यहीनक़्शा है वले इसक़दर आबाद नहीं
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
हैक्या जो कस केबाँधिए मेरी बला डरे
क्याजानता नहीं हूँ तुम्हारी कमर को मैं
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
रोनेसे और इश्क़ मेंबे-बाक हो गए
धोएगए हम इतने किबस पाक हो गए
मिर्ज़ाग़ालिब
अप्रचलितशेर
दम-ए-वापसीं बर-सर-राह है
अज़ीज़ोअब अल्लाह ही अल्लाह है
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
क़ासिदके आते आते ख़त इक और लिखरखूँ
मैंजानता हूँ जो वो लिखेंगेजवाब में
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
सँभलनेदे मुझे ऐ ना-उमीदीक्या क़यामत है
किदामान-ए-ख़याल-ए-यार छूटा जाए है मुझ से
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
ज़िक्रउस परी-वश का औरफिर बयाँ अपना
बनगया रक़ीब आख़िर था जो राज़-दाँ अपना
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
बे-इश्क़ उम्र कट नहीं सकतीहै और याँ
ताक़तब-क़दर-ए-लज़्ज़त-ए-आज़ार भी नहीं
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
नहुई गर मिरे मरनेसे तसल्ली न सही
इम्तिहाँऔर भी बाक़ी होतो ये भी नसही
मिर्ज़ाग़ालिब
अप्रचलितशेर
शमशीरसाफ़ यार जो ज़हराब दादाहो
वोख़त सब्ज़ है कि बरुख़्सार सादा हो
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
दोनोंजहान दे के वोसमझे ये ख़ुश रहा
याँआ पड़ी ये शर्म कितकरार क्या करें
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
लाज़िमथा कि देखो मिरारस्ता कोई दिन और
तन्हागए क्यूँ अब रहो तन्हाकोई दिन और
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
देखिएलाती है उस शोख़की नख़वत क्या रंग
उसकी हर बात पेहम नाम-ए-ख़ुदा कहतेहैं
मिर्ज़ाग़ालिब
अप्रचलितशेर
अगरहोता तो क्या होताये कहिए
नहोने पर हैं येबातें दहन की
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
यारब हमें तो ख़्वाब मेंभी मत दिखाइयो
येमहशर-ए-ख़याल किदुनिया कहें जिसे
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
दाइमपड़ा हुआ तिरे दर पर नहींहूँ मैं
ख़ाकऐसी ज़िंदगी पे कि पत्थरनहीं हूँ मैं
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
फ़र्दा-ओ-दी कातफ़रक़ा यक बार मिटगया
कलतुम गए कि हमपे क़यामत गुज़र गई
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
हज़ारोंख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिशपे दम निकले
बहुतनिकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
वादाआने का वफ़ा कीजेये क्या अंदाज़ है
तुमने क्यूँ सौंपी है मेरे घरकी दरबानी मुझे
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
रहेन जान तो क़ातिल कोख़ूँ-बहा दीजे
कटेज़बान तो ख़ंजर कोमरहबा कहिए
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
ज़िंदगीमें तो वो महफ़िलसे उठा देते थे
देखूँअब मर गए परकौन उठाता है मुझे
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
वफ़ा-दारी ब-शर्त-ए-उस्तुवारी अस्ल ईमाँ है
मरेबुत-ख़ाने में तो काबे मेंगाड़ो बिरहमन को
मिर्ज़ाग़ालिब
अप्रचलितशेर
करताहै गुल जुनून तमाशा कहें जिसे
गुल-दस्ता-ए-निगाह सुवैदाकहें जिसे
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
ख़ुदाशरमाए हाथों को कि रखतेहैं कशाकश में
कभीमेरे गरेबाँ को कभी जानाँके दामन को
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
दाग़-ए-फ़िराक़-ए-सोहबत-ए-शब कीजली हुई
इकशम्अ रह गई हैसो वो भी ख़मोशहै
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
हाँअहल-ए-तलब कौनसुने ताना-ए-ना-याफ़्त
देखाकि वो मिलता नहींअपने ही को खोआए
मिर्ज़ाग़ालिब
अप्रचलितशेर
‘असद’ बहार-ए-तमाशा-ए-गुलिस्तान-ए-हयात
विसाल-ए-लाला अज़रान-ए-सर्व-क़ामतहै
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
या-रब ज़माना मुझको मिटाता है किस लिए
लौह-ए-जहाँ पेहर्फ़-ए-मुकर्रर नहींहूँ मैं
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
बुलबुलके कारोबार पे हैं ख़ंदा-हा-ए-गुल
कहतेहैं जिस को इश्क़ ख़ललहै दिमाग़ का
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
दिलसे मिटना तिरी अंगुश्त-ए-हिनाई काख़याल
होगया गोश्त से नाख़ुन काजुदा हो जाना
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
कहसके कौन कि ये जल्वागरीकिस की है
पर्दाछोड़ा है वो उसने कि उठाए नबने
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
गरतुझ को है यक़ीन-ए-इजाबत दुआन माँग
यानीबग़ैर-ए-यक-दिल-ए-बे-मुद्दआन माँग
मिर्ज़ाग़ालिब
अप्रचलितशेर
जोमा’शूक़-ए-ज़ुल्फ़-ए-दोता बाँधते हैं
मिरेसर से काली बलाबाँधते हैं
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
बैठाहै जो कि साया-ए-दीवार-ए-यार में
फ़रमाँ-रवा-ए-किश्वर-ए-हिन्दुस्तान है
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
बे-पर्दा सू-ए-वादी-ए-मजनूँ गुज़रन कर
हरज़र्रा के नक़ाब मेंदिल बे-क़रार है
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
ज़ोफ़में तअना-ए-अग़्यार काशिकवा क्या है
बातकुछ सर तो नहींहै कि उठा भीन सकूँ
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
देखनातक़रीर की लज़्ज़त किजो उस ने कहा
मैंने ये जाना किगोया ये भी मेरेदिल में है
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
मैंने जुनूँ से की जो’असद’ इल्तिमास-ए-रंग
ख़ून-ए-जिगर मेंएक ही ग़ोता दियामुझे
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
लेताहूँ मकतब-ए-ग़म-ए-दिल में सबक़ हनूज़
लेकिनयही कि रफ़्त गयाऔर बूद था
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
रहीन ताक़त-ए-गुफ़्तार औरअगर हो भी
तोकिस उमीद पे कहिए किआरज़ू क्या है
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
ना-कर्दा गुनाहों की भी हसरतकी मिले दाद
यारब अगर इन कर्दा गुनाहोंकी सज़ा है
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
क्याख़ूब तुम ने ग़ैर कोबोसा नहीं दिया
बसचुप रहो हमारे भी मुँह मेंज़बान है
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
सौबार बंद-ए-इश्क़ सेआज़ाद हम हुए
परक्या करें कि दिल हीअदू है फ़राग़ का
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
लरज़ताहै मिरा दिल ज़हमत-ए-मेहर-ए-दरख़्शाँ पर
मैंहूँ वो क़तरा-ए-शबनम कि हो ख़ार-ए-बयाबाँ पर
मिर्ज़ाग़ालिब
अप्रचलितशेर
आजयक-शम्बे का दिन हैआओगे
याफ़क़त रस्ता हमें बतलाओगे
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
वा-हसरता कि यार नेखींचा सितम से हाथ
हमको हरीस-ए-लज़्ज़त-ए-आज़ार देख कर
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
कावकाव-ए-सख़्त-जानीहाए-तन्हाई न पूछ
सुब्हकरना शाम का लाना हैजू-ए-शीर का
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
क्यूँगर्दिश-ए-मुदाम सेघबरा न जाए दिल
इंसानहूँ पियाला ओ साग़र नहींहूँ मैं
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
मयसे ग़रज़ नशात है किस रू-सियाह को
इक-गूना बे-ख़ुदी मुझेदिन रात चाहिए
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
इनआबलों से पाँव केघबरा गया था मैं
जीख़ुश हुआ है राह कोपुर-ख़ार देख कर
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
भलेही छाँव न दे आसरातो देता है
येआरज़ू का शजर हैख़िज़ाँ-रसीदा सही
ग़ालिबअयाज़
शेर
फूँकाहै किस ने गोश-ए-मोहब्बत में ऐ ख़ुदा
अफ़्सून-ए-इंतिज़ार तमन्नाकहें जिसे
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
हुईजिन से तवक़्क़ो ख़स्तगीकी दाद पाने की
वोहम से भी ज़ियादाख़स्ता-ए-तेग़-ए-सितम निकले
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
तुझसे क़िस्मत में मिरी सूरत-ए-क़ुफ़्ल-ए-अबजद
थालिखा बात के बनते हीजुदा हो जाना
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
ज़िदकी है और बातमगर ख़ू बुरी नहीं
भूलेसे उस ने सैकड़ोंवादे वफ़ा किए
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
ईमाँमुझे रोके है जो खींचेहै मुझे कुफ़्र
काबामिरे पीछे है कलीसा मिरेआगे
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
करनेगए थे उस सेतग़ाफ़ुल का हम गिला
कीएक ही निगाह किबस ख़ाक हो गए
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
छोड़ूँगामैं न उस बुत-ए-काफ़िर कापूजना
छोड़ेन ख़ल्क़ गो मुझे काफ़रकहे बग़ैर
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
मैंअदम से भी परेहूँ वर्ना ग़ाफ़िल बार-हा
मेरीआह-ए-आतिशीं सेबाल-ए-अन्क़ा जलगया
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
मिसालये मिरी कोशिश की है किमुर्ग़-ए-असीर
करेक़फ़स में फ़राहम ख़स आशियाँ के लिए
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
जलाहै जिस्म जहाँ दिल भी जल गयाहोगा
कुरेदतेहो जो अब राखजुस्तुजू क्या है
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
फ़ाएदाक्या सोच आख़िर तू भी दानाहै ‘असद’
दोस्तीनादाँ की है जीका ज़ियाँ हो जाएगा
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
कलकत्तेका जो ज़िक्र कियातू ने हम-नशीं
इकतीर मेरे सीने में मारा कि हाए हाए
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
चलताहूँ थोड़ी दूर हर इक तेज़-रौ के साथ
पहचानतानहीं हूँ अभी राहबर को मैं
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
बे-नियाज़ी हद से गुज़रीबंदा-परवर कब तलक
हमकहेंगे हाल-ए-दिल औरआप फ़रमावेंगे क्या
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
ग़ैरको या रब वोक्यूँकर मन-ए-गुस्ताख़ीकरे
गरहया भी उस कोआती है तो शरमाजाए है
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
उधरवो बद-गुमानी हैइधर ये ना-तवानीहै
नपूछा जाए है उस सेन बोला जाए है मुझ से
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
हैगै़ब-ए-ग़ैब जिसको समझते हैं हम शुहूद
हैंख़्वाब में हुनूज़ जो जागे हैंख़्वाब में
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
इससादगी पे कौन नमर जाए ऐ ख़ुदा
लड़तेहैं और हाथ मेंतलवार भी नहीं
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
ताफिर न इंतिज़ार मेंनींद आए उम्र भर
आनेका अहद कर गए आएजो ख़्वाब में
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
वफ़ाकैसी कहाँ का इश्क़ जबसर फोड़ना ठहरा
तोफिर ऐ संग-दिलतेरा ही संग-ए-आस्ताँ क्यूँ हो
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
पकड़ेजाते हैं फ़रिश्तों के लिखे परना-हक़
आदमीकोई हमारा दम-ए-तहरीरभी था
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
येन थी हमारी क़िस्मतकि विसाल-ए-यार होता
अगरऔर जीते रहते यही इंतिज़ार होता
मिर्ज़ाग़ालिब
अप्रचलितशेर
मेंभोला नहीं तुझ को ए मेरीजाँ
करूँक्या कि याँ गिररहे हैं मकाँ
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
पिलादे ओक से साक़ीजो हम से नफ़रतहै
पियालागर नहीं देता न दे शराबतो दे
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
आईनादेख अपना सा मुँह लेके रह गए
साहबको दिल न देने पेकितना ग़ुरूर था
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
मुँहन दिखलावे न दिखला परब-अंदाज़-ए-इताब
खोलकर पर्दा ज़रा आँखें ही दिखला देमुझे
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
पूछेहै क्या वजूद ओ अदम अहल-ए-शौक़ का
आपअपनी आग के ख़स-ओ-ख़ाशाक होगए
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
हमारेशेर हैं अब सिर्फ़ दिल-लगी के ‘असद’
खुलाकि फ़ाएदा अर्ज़-ए-हुनर मेंख़ाक नहीं
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
यहीहै आज़माना तो सताना किसको कहते हैं
अदूके हो लिए जबतुम तो मेरा इम्तिहाँक्यूँ हो
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
मेहरबाँहो के बुला लोमुझे चाहो जिस वक़्त
मैंगया वक़्त नहीं हूँ कि फिर आभी न सकूँ
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
नेतीर कमाँ में है न सय्यादकमीं में
गोशेमें क़फ़स के मुझे आरामबहुत है
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
अबजफ़ा से भी हैंमहरूम हम अल्लाह अल्लाह
इसक़दर दुश्मन-ए-अरबाब-ए-वफ़ा हो जाना
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
निकलनाख़ुल्द से आदम कासुनते आए हैं लेकिन
बहुतबे-आबरू हो कर तिरेकूचे से हम निकले
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
दिलही तो है सियासत-ए-दरबाँ सेडर गया
मैंऔर जाऊँ दर से तिरेबिन सदा किए
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
जीढूँडता है फिर वहीफ़ुर्सत कि रात दिन
बैठेरहें तसव्वुर-ए-जानाँ किएहुए
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
हरइक मकान को है मकींसे शरफ़ ‘असद’
मजनूँजो मर गया हैतो जंगल उदास है
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
मोहब्बतमें नहीं है फ़र्क़ जीनेऔर मरने का
उसीको देख कर जीते हैंजिस काफ़िर पे दम निकले
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
वोआए घर में हमारेख़ुदा की क़ुदरत है
कभीहम उन को कभीअपने घर को देखतेहैं
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
हवस-ए-गुल केतसव्वुर में भी खटका नरहा
अजबआराम दिया बे-पर-ओ-बाली ने मुझे
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
बे-दर-ओ-दीवारसा इक घर बनायाचाहिए
कोईहम-साया न हो औरपासबाँ कोई न हो
मिर्ज़ाग़ालिब
अप्रचलितशेर
सिनीन-ए-उम्र केसत्तर हुए शुमार बरस
बहुतजियूँ तो जियूँ औरतीन चार बरस
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
गिरनीथी हम पे बर्क़-ए-तजल्ली नतूर पर
देतेहैं बादा ज़र्फ़-ए-क़दह-ख़्वारदेख कर
मिर्ज़ाग़ालिब
अप्रचलितशेर
पीठमेहराब की क़िबले कीतरफ़ रहती है
महव-ए-निस्बत हैंतकल्लुफ़ हमें मंज़ूर नहीं
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
अल्लाहरे ज़ौक़-ए-दश्त-नवर्दीकि बाद-ए-मर्ग
हिलतेहैं ख़ुद-ब-ख़ुद मिरेअंदर कफ़न के पाँव
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
गोहाथ को जुम्बिश नहींआँखों में तो दम है
रहनेदो अभी साग़र-ओ-मीना मिरेआगे
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
कीउस ने गर्म सीना-ए-अहल-ए-हवस में जा
आवेन क्यूँ पसंद कि ठंडा मकानहै
मिर्ज़ाग़ालिब
अप्रचलितशेर
दिलतो हो अच्छा नहींहै गर दिमाग़
कुछतो अस्बाब-ए-तमन्ना चाहिए
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
जल्वेका तेरे वो आलम हैकि गर कीजे ख़याल
दीदा-ए-दिल कोज़ियारत-गाह-ए-हैरानी करे
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
सबकहाँ कुछ लाला-ओ-गुल मेंनुमायाँ हो गईं
ख़ाकमें क्या सूरतें होंगी कि पिन्हाँ होगईं
मिर्ज़ाग़ालिब
अप्रचलितशेर
सबालगा वो तपाँचे तरफ़से बुलबुल की
किरू-ए-ग़ुंचा-ए-गुल सू-ए-आश्याँफिर जाए
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
भागेथे हम बहुत सोउसी की सज़ा हैये
होकर असीर दाबते हैं राहज़न के पाँव
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
हाँवो नहीं ख़ुदा-परस्त जाओ वो बेवफ़ा सही
जिसको हो दीन ओदिल अज़ीज़ उस की गलीमें जाए क्यूँ
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
दश्ना-ए-ग़म्ज़ा जाँ-सिताँ नावक-ए-नाज़ बे-पनाह
तेराही अक्स-ए-रुख़ सहीसामने तेरे आए क्यूँ
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
सरपा-ए-ख़ुम पेचाहिए हंगाम-ए-बे-ख़ुदी
रूसू-ए-क़िबला वक़्त-ए-मुनाजात चाहिए
मिर्ज़ाग़ालिब
अप्रचलितशेर
ख़ुशीजीने की क्या मरनेका ग़म क्या
हमारीज़िंदगी क्या और हम क्या
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
क्यूँन फ़िरदौस में दोज़ख़ को मिला लेंयारब
सैरके वास्ते थोड़ी सी जगह औरसही
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
रहिएअब ऐसी जगह चल कर जहाँकोई न हो
हम-सुख़न कोई न हो औरहम-ज़बाँ कोई न हो
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
छोड़ान रश्क ने कि तिरेघर का नाम लूँ
हरइक से पूछता हूँकि जाऊँ किधर को मैं
मिर्ज़ाग़ालिब
अप्रचलितशेर
वोबात चाहते हो कि जोबात चाहिए
साहबके हम-नशीं कोकरामात चाहिए
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
मैंने चाहा था कि अंदोह-ए-वफ़ा सेछूटूँ
वोसितमगर मिरे मरने पे भी राज़ीन हुआ
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
आँखकी तस्वीर सर-नामे पेखींची है कि ता
तुझपे खुल जावे कि इस कोहसरत-ए-दीदार है
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
खुलेगाकिस तरह मज़मूँ मिरे मक्तूब का या रब
क़समखाई है उस काफ़िरने काग़ज़ के जलाने की
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
साबितहुआ है गर्दन-ए-मीना पे ख़ून-ए-ख़ल्क़
लरज़ेहै मौज-ए-मय तिरीरफ़्तार देख कर
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
आताहै दाग़-ए-हसरत-ए-दिल का शुमार याद
मुझसे मिरे गुनह का हिसाब ऐख़ुदा न माँग
मिर्ज़ाग़ालिब
अप्रचलितशेर
थातो ख़त पर न थाजवाब-तलब
कोईउस का जवाब क्यालिखता
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
हमसे खुल जाओ ब-वक़्त-ए-मय-परस्ती एकदिन
वर्नाहम छेड़ेंगे रख कर उज़्र-ए-मस्ती एकदिन
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
क़र्ज़की पीते थे मय लेकिनसमझते थे कि हाँ
रंगलावेगी हमारी फ़ाक़ा-मस्ती एक दिन
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
देखनाक़िस्मत कि आप अपनेपे रश्क आ जाए है
मैंउसे देखूँ भला कब मुझ सेदेखा जाए है
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
ताअतमें ता रहे नमय-ओ-अँगबीं कीलाग
दोज़ख़में डाल दो कोई लेकर बहिश्त को
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
हैंआज क्यूँ ज़लील कि कल तकन थी पसंद
गुस्ताख़ी-ए-फ़रिश्ता हमारीजनाब में
मिर्ज़ाग़ालिब
अप्रचलितशेर
होकर शहीद इश्क़ में पाए हज़ार जिस्म
हरमौज-ए-गर्द-ए-राह मिरे सर को दोशहै
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
हैराँहूँ दिल को रोऊँ किपीटूँ जिगर को मैं
मक़्दूरहो तो साथ रखूँनौहागर को मैं
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
तिरेवादे पर जिए हमतो ये जान झूटजाना
किख़ुशी से मर नजाते अगर ए’तिबार होता
मिर्ज़ाग़ालिब
अप्रचलितशेर
मैंक़ाइल-ए-ख़ुदा-ओ-नबी-ओ-इमाम हूँ
बंदाख़ुदा का और अलीका ग़ुलाम हूँ
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
वोचीज़ जिस के लिए हमको हो बहिश्त अज़ीज़
सिवाएबादा-ए-गुलफ़ाम-ए-मुश्क-बू क्या है
मिर्ज़ाग़ालिब
अप्रचलितशेर
तिमसाल-ए-जल्वा अर्ज़कर ऐ हुस्न कबतलक
आईना-ए-ख़याल कोदेखा करे कोई
मिर्ज़ाग़ालिब
अप्रचलितशेर
नतीजाअपनी आहों का है शक्ल-ए-मुस्तवी पूरा
हयूलासूरत-ए-काबूस फिरख़्वाब-ए-गिराँ क्यूँहो
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
अगलेवक़्तों के हैं येलोग इन्हें कुछ न कहो
जोमय ओ नग़्मा कोअंदोह-रुबा कहते हैं
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
हैख़याल-ए-हुस्न मेंहुस्न-ए-अमल कासा ख़याल
ख़ुल्दका इक दर हैमेरी गोर के अंदर खुला
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
सताइश-गर है ज़ाहिदइस क़दर जिस बाग़-ए-रिज़वाँ का
वोइक गुल-दस्ता है हम बे-ख़ुदों के ताक़-ए-निस्याँ का
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
क्यूँजल गया न ताब-ए-रुख़-ए-यार देखकर
जलताहूँ अपनी ताक़त-ए-दीदार देखकर
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
तंगी-ए-दिल कागिला क्या ये वो काफ़िर-दिल है
किअगर तंग न होता तोपरेशाँ होता
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
कीमिरे क़त्ल के बाद उसने जफ़ा से तौबा
हाएउस ज़ूद-पशीमाँ का पशीमाँ होना
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
तुमजानो तुम को ग़ैर सेजो रस्म-ओ-राह हो
मुझको भी पूछते रहोतो क्या गुनाह हो
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
परतव-ए-ख़ुर सेहै शबनम को फ़ना कीतालीम
मैंभी हूँ एक इनायत कीनज़र होते तक
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
पुरहूँ मैं शिकवे से यूँ रागसे जैसे बाजा
इकज़रा छेड़िए फिर देखिए क्या होता है
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
घरमें था क्या कितिरा ग़म उसे ग़ारत करता
वोजो रखते थे हम इकहसरत-ए-तामीर सोहै
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
येफ़ित्ना आदमी की ख़ाना-वीरानीको क्या कम है
हुएतुम दोस्त जिस के दुश्मन उसका आसमाँ क्यूँ हो
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
मैंऔर बज़्म-ए-मय सेयूँ तिश्ना-काम आऊँ
गरमैं ने की थीतौबा साक़ी को क्या हुआथा
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
बू-ए-गुल नाला-ए-दिल दूद-ए-चराग़-ए-महफ़िल
जोतिरी बज़्म से निकला सोपरेशाँ निकला
मिर्ज़ाग़ालिब
अप्रचलितशेर
हँसतेहैं देख देख के सब ना-तवाँ मुझे
येरंग ज़र्द है चमन ज़ाफ़राँमुझे
मिर्ज़ाग़ालिब
अप्रचलितशेर
देखताहूँ उसे थी जिस कीतमन्ना मुझ को
आजबेदारी में है ख़्वाब-ए-ज़ुलेख़ा मुझ को
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
दिखाके जुम्बिश-ए-लब हीतमाम कर हम को
नदे जो बोसा तोमुँह से कहीं जवाबतो दे
मिर्ज़ाग़ालिब
अप्रचलितशेर
पूछेहै क्या मआश-ए-जिगर तफ़्तगान-ए-इश्क़
जूँशम्अ’ आप अपनी वोख़ूराक हो गए
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
नज़रलगे न कहीं उसके दस्त-ओ-बाज़ू को
येलोग क्यूँ मिरे ज़ख़्म-ए-जिगर कोदेखते हैं
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
बोसादेते नहीं और दिल पेहै हर लहज़ा निगाह
जीमें कहते हैं कि मुफ़्त आएतो माल अच्छा है
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
सोहबतमें ग़ैर की न पड़ीहो कहीं ये ख़ू
देनेलगा है बोसा बग़ैरइल्तिजा किए
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
कीवफ़ा हम से तोग़ैर इस को जफ़ाकहते हैं
होतीआई है कि अच्छोंको बुरा कहते हैं
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
ख़ूबथा पहले से होते जोहम अपने बद-ख़्वाह
किभला चाहते हैं और बुरा होताहै
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
गरकिया नासेह ने हम कोक़ैद अच्छा यूँ सही
येजुनून-ए-इश्क़ केअंदाज़ छुट जावेंगे क्या
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
येकहाँ की दोस्ती हैकि बने हैं दोस्त नासेह
कोईचारासाज़ होता कोई ग़म-गुसार होता
मिर्ज़ाग़ालिब
अप्रचलितशेर
जौर-ए-ज़ुल्फ़ कीतक़रीर पेच-ताब-ए-ख़ामोशी
हिन्दमें ‘असद’ नालाँ नाला दर सफ़ाहाँ है
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
या-रब वो नसमझे हैं न समझेंगे मिरीबात
देऔर दिल उन को जोन दे मुझ कोज़बाँ और
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
यूँही गर रोता रहा’ग़ालिब’ तो ऐ अहल-ए-जहाँ
देखनाइन बस्तियों को तुम किवीराँ हो गईं
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
इसनज़ाकत का बुरा होवो भले हैं तो क्या
हाथआवें तो उन्हें हाथलगाए न बने
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
क्याफ़र्ज़ है कि सबको मिले एक सा जवाब
आओन हम भी सैरकरें कोह-ए-तूर की
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
आजवाँ तेग़ ओ कफ़न बाँधेहुए जाता हूँ मैं
उज़्रमेरे क़त्ल करने में वो अब लावेंगेक्या
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
ज़बाँपे बार-ए-ख़ुदाया येकिस का नाम आया
किमेरे नुत्क़ ने बोसे मिरीज़बाँ के लिए
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
यूसुफ़उस को कहो औरकुछ न कहे ख़ैरहुई
गरबिगड़ बैठे तो मैं लाइक़-ए-ताज़ीर भीथा
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
उम्रभर का तू नेपैमान-ए-वफ़ा बाँधातो क्या
उम्रको भी तो नहींहै पाएदारी हाए हाए
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
रश्ककहता है कि उसका ग़ैर से इख़्लास हैफ़
अक़्लकहती है कि वोबे-मेहर किस का आश्ना
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
गरचेहै तर्ज़-ए-तग़ाफ़ुल पर्दा-दार-ए-राज़-ए-इश्क़
परहम ऐसे खोए जाते हैं कि वो पाजाए है
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
हैअब इस मामूरे मेंक़हत-ए-ग़म-ए-उल्फ़त ‘असद’
हमने ये माना किदिल्ली में रहें खावेंगे क्या
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
रंजसे ख़ूगर हुआ इंसाँ तो मिट जाताहै रंज
मुश्किलेंमुझ पर पड़ीं इतनीकि आसाँ हो गईं
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
मोहब्बतथी चमन से लेकिन अबये बे-दिमाग़ी है
किमौज-ए-बू-ए-गुल से नाक मेंआता है दम मेरा
मिर्ज़ाग़ालिब
अप्रचलितशेर
ख़ुदासे मैं भी चाहूँ अज़-रह-ए-मेहर
फ़रोग़-ए-मीरज़ा-हातिम-अली-‘मेहर’
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
समझके करते हैं बाज़ार में वो पुर्सिश-ए-हाल
किये कहे कि सर-ए-रहगुज़र है क्या कहिए
मिर्ज़ाग़ालिब
अप्रचलितशेर
यादआया जो वो कहनाकि नहीं वाह ग़लत
कीतसव्वुर ने ब-सहरा-ए-हवस राहग़लत
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
नींदउस की है दिमाग़उस का है रातेंउस की हैं
तेरीज़ुल्फ़ें जिस के बाज़ू परपरेशाँ हो गईं
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
येलाश-ए-बे-कफ़न’असद’-ए-ख़स्ता-जाँकी है
हक़मग़फ़िरत करे अजब आज़ाद मर्द था
मिर्ज़ाग़ालिब
अप्रचलितशेर
पीनसमें गुज़रते हैं जो कूचे सेवो मेरे
कंधाभी कहारों को बदलने नहींदेते
मिर्ज़ाग़ालिब
अप्रचलितशेर
दो-रंगियाँ ये ज़माने कीजीते-जी हैं सब
किमुर्दों को न बदलतेहुए कफ़न देखा
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
मैंने कहा कि बज़्म-ए-नाज़ चाहिए ग़ैर से तिही
सुनके सितम-ज़रीफ़ ने मुझ कोउठा दिया कि यूँ
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
उसलब से मिल हीजाएगा बोसा कभी तो हाँ
शौक़-ए-फ़ुज़ूल ओजुरअत-ए-रिंदाना चाहिए
मिर्ज़ाग़ालिब
अप्रचलितशेर
ख़ुदाके बा’द नबीऔर नबी के बा’दइमाम
यहीहै मज़हब-ए-हक़ वस्सलामवल-इकराम
मिर्ज़ाग़ालिब
अप्रचलितशेर
सर-रिश्ता-ए-बेताबी-ए-दिल दर-गिरह-ए-इज्ज़
पर्वाज़बख़ूँ ख़ुफ़्ता-ओ-फ़र्याद-रसाहै
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
जबतक कि न देखाथा क़द-ए-यार काआलम
मैंमो’तक़िद-ए-फ़ित्ना-ए-महशर न हुआ था
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
क्यूँन ठहरें हदफ़-ए-नावक-ए-बे-दाद किहम
आपउठा लेते हैं गर तीर ख़ताहोता है
मिर्ज़ाग़ालिब
अप्रचलितशेर
ता-क़यामत शब-ए-फ़ुर्क़तमें गुज़र जाएगी उम्र
सातदिन हम पे भीभारी हैं सहर होने तक
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
धोताहूँ जब मैं पीनेको उस सीम-तनके पाँव
रखताहै ज़िद से खींच केबाहर लगन के पाँव
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
येहम जो हिज्र मेंदीवार-ओ-दर कोदेखते हैं
कभीसबा को कभी नामा-बर को देखतेहैं
मिर्ज़ाग़ालिब
अप्रचलितशेर
बे-चारा कितनी दूर से आया हैशैख़-जी
का’बे में क्यूँदबाएँ न हम बरहमनके पाँव
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
क़ैद-ए-हयात ओबंद-ए-ग़म अस्लमें दोनों एक हैं
मौतसे पहले आदमी ग़म से नजात पाएक्यूँ
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
किसीको दे के दिलकोई नवा-संज-ए-फ़ुग़ाँ क्यूँहो
नहो जब दिल हीसीने में तो फिर मुँहमें ज़बाँ क्यूँ हो
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
हैतमाशा-गाह-ए-सोज़-ए-ताज़ा हर यक उज़्व-ए-तन
जूँचराग़ान-ए-दिवाली सफ़-ब-सफ़ जलताहूँ मैं
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
ग़म-ए-हस्ती का’असद’ किस से हो जुज़मर्ग इलाज
शम्अहर रंग में जलती है सहर होतेतक
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
मैंभी रुक रुक के न मरताजो ज़बाँ के बदले
दशनाइक तेज़ सा होता मिरेग़म-ख़्वार के पास
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
अपनीगली में मुझ को न करदफ़्न बाद-ए-क़त्ल
मेरेपते से ख़ल्क़ कोक्यूँ तेरा घर मिले
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
कोईमेरे दिल से पूछे तिरेतीर-ए-नीम-कशको
येख़लिश कहाँ से होती जोजिगर के पार होता
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
हरएक बात पे कहते होतुम कि तू क्याहै
तुम्हींकहो कि ये अंदाज़-ए-गुफ़्तुगू क्याहै
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
मयवो क्यूँ बहुत पीते बज़्म-ए-ग़ैर मेंया रब
आजही हुआ मंज़ूर उन को इम्तिहाँअपना
मिर्ज़ाग़ालिब
अप्रचलितशेर
नियाज़-ए-इश्क़ ख़िर्मन-सोज़-ए-अस्बाब-ए-हवस बेहतर
जोहो जावे निसार-ए-बर्क़ मुश्त-ए-ख़ार-ओ-ख़स बेहतर
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
बंदगीमें भी वो आज़ादाओ ख़ुद-बीं हैं कि हम
उल्टेफिर आए दर-ए-काबा अगर वा न हुआ
मिर्ज़ाग़ालिब
अप्रचलितशेर
हालततिरे आशिक़ की ये अबआन बनी है
आज़ा-शिकनी हो चुकी अबजाँ-शिकनी है
मिर्ज़ाग़ालिब
अप्रचलितशेर
गरमुसीबत थी तो ग़ुर्बतमें उठा लेता ‘असद’
मेरीदिल्ली ही में होनीथी ये ख़्वारी हाएहाए
मिर्ज़ाग़ालिब
अप्रचलितशेर
अज़दिल-ए-हर-दर्द-मंदी जोश-ए-बेताबी ज़दन
ऐहमा बे-मुद्दआई यकदुआ हो जाइए
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
हज़रत-ए-नासेह गरआवें दीदा ओ दिल फ़र्श-ए-राह
कोईमुझ को ये तोसमझा दो कि समझाएँगेक्या
मिर्ज़ाग़ालिब
अप्रचलितशेर
मस्जिदके ज़ेर-ए-साया इकघर बना लिया है
येबंदा-ए-कमीना हम-साया-ए-ख़ुदा है
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
हुएमर के हम जोरुस्वा हुए क्यूँ न ग़र्क़-ए-दरिया
नकभी जनाज़ा उठता न कहीं मज़ारहोता
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
ऐनवा-साज़-ए-तमाशा सर-ब-कफ़ जलताहूँ मैं
इकतरफ़ जलता है दिल औरइक तरफ़ जलता हूँ मैं
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
दाम-ए-हर-मौजमें है हल्क़ा-ए-सद-काम-ए-नहंग
देखेंक्या गुज़रे है क़तरे पेगुहर होते तक
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
दिलमें ज़ौक़-ए-वस्ल ओयाद-ए-यार तकबाक़ी नहीं
आगइस घर में लगीऐसी कि जो थाजल गया
मिर्ज़ाग़ालिब
अप्रचलितशेर
जिसदिन से कि हमग़म-ज़दा ज़ंजीर बपा हैं
कपड़ोंमें जवीं बख़िये के टाँकों सेसिवा हैं
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
मुझतक कब उन कीबज़्म में आता था दौर-ए-जाम
साक़ीने कुछ मिला न दिया होशराब में
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
नथा कुछ तो ख़ुदा थाकुछ न होता तोख़ुदा होता
डुबोयामुझ को होने नेन होता मैं तो क्या होता
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
बिसात-ए-इज्ज़ मेंथा एक दिल यकक़तरा ख़ूँ वो भी
सोरहता है ब-अंदाज़-ए-चकीदन सर-निगूँ वो भी
मिर्ज़ाग़ालिब
अप्रचलितशेर
बुतोतौबा करो तुम क्या हो जब ए’तिबार आता है
तूयूसुफ़ सा हसीं बिकनेसर-ए-बाज़ार आताहै
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
कामउस से आ पड़ाहै कि जिस काजहान में
लेवेन कोई नाम सितम-गर कहे बग़ैर
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
जबमय-कदा छुटा तो फिर अबक्या जगह की क़ैद
मस्जिदहो मदरसा हो कोई ख़ानक़ाहहो
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
उनके देखे से जो आजाती है मुँह पररौनक़
वोसमझते हैं कि बीमार काहाल अच्छा है
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
ग़मअगरचे जाँ-गुसिल है प कहाँबचें कि दिल है
ग़म-ए-इश्क़ गरन होता ग़म-ए-रोज़गार होता
मिर्ज़ाग़ालिब
अप्रचलितशेर
बहार-ए-शोख़-ओ-चमन-तंग-ओ-रंग-ए-गुल दिलचस्प
नसीम-ए-बाग़ सेपा-दर हिना निकलतीहै
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
कभीनेकी भी उस केजी में गर आ जाएहै मुझ से
जफ़ाएँकर के अपनी यादशरमा जाए है मुझ से
मिर्ज़ाग़ालिब
अप्रचलितशेर
ज़राकर ज़ोर सीने पर कि तीर-ए-पुर-सितमनिकले
जोवो निकले तो दिल निकलेजो दिल निकले तो दम निकले
मिर्ज़ाग़ालिब
अप्रचलितशेर
ज़ख़्म-ए-दिल तुमने दिखाया है कि जीजाने है
ऐसेहँसते को रुलाया हैकि जी जाने है
मिर्ज़ाग़ालिब
अप्रचलितशेर
इनदिल-फ़रेबियों से न क्यूँउस पे प्यार आए
रूठाजो बे-गुनाह तोबे-उज़्र मन गया
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
नलुटता दिन को तो कबरात को यूँ बे-ख़बर सोता
रहाखटका न चोरी कादुआ देता हूँ रहज़न को
मिर्ज़ाग़ालिब
अप्रचलितशेर
थकाजब क़तरा-ए-बे-दस्त-ओ-पा बालादवीदन से
ज़-बहर-ए-यादगारी-हागिरह देता है गौहर की
मिर्ज़ाग़ालिब
अप्रचलितशेर
ना-तवाई ने न छोड़ाबस कि पेश अज़अक्स-ए-जिस्म
मुफ़्तवा गुस्तरदनी है फ़र्श-ए-ख़्वाब आईने पर
मिर्ज़ाग़ालिब
अप्रचलितशेर
मज़ातो जब है किऐ आह-ए-ना-रसा हम से
वोख़ुद कहे कि बता तेरीआरज़ू क्या है
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
कहूँकिस से मैं किक्या है शब-ए-ग़म बुरी बला है
मुझेक्या बुरा था मरना अगरएक बार होता
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
दिलही तो है नसंग-ओ-ख़िश्त दर्दसे भर न आएक्यूँ
रोएँगेहम हज़ार बार कोई हमें सताए क्यूँ
मिर्ज़ाग़ालिब
अप्रचलितशेर
नक़्श-ए-सत्र-ए-सद-तबस्सुम हैबर-आब-ए-ज़ेर-ए-काह
हुस्नका ख़त पर निहाँ ख़नदीदनीअंदाज़ है
मिर्ज़ाग़ालिब
अप्रचलितशेर
रोज़इस शहर में इक हुक्म नयाहोता है
कुछसमझ में नहीं आता है कि क्याहोता है
मिर्ज़ाग़ालिब
शेर
‘मीर’ को क्यूँ न मुग़्तनिम जाने
अगलेलोगों में इक रहा हैये
मीरतक़ी मीर
— By Gaurav Joshi